May 21, 2024

श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 1 मई 2024। मंगलवार सुबह मीडिया रिपोर्ट्स में कोविशील्ड दवा बनाने वाली कंपनी द्वारा गंभीर साइड इफेक्ट स्वीकारने के बाद नागरिकों में जबरदस्त चर्चा के साथ चिंता का विषय बन गया। दिनभर लोग अपने पुराने वैक्सीन लगवाने के प्रमाणपत्र खंगालते नजर आए जिससे वे जान सकें कि उन्हें कोविशील्ड वैक्सीन लगी या कोवैक्सीन। हर गली, नुक्कड़ सहित पान की दुकानों, हर बैठक में चर्चा कोरोना वैक्सीन की ही सुनाई दी। राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे खराब राजनीति का एक हथकंडा भी बताया वहीं आमजन में छाए इस अनजाने भय व चिंता के माहौल को मिटाने के लिए अनेक विशेषज्ञों ने मीडिया संस्थानों को अपनी राय दी है। आप भी पढ़े सबसे चर्चित मुद्दे पर विभिन्न प्लेटफार्म से ली गई पूरी रिपोर्ट श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स के साथ।

दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका ने ब्रिटिश कोर्ट में बताया है कि उसकी कोविड वैक्सीन थ्रोम्बोसिस सिंड्रोम का कारण बन सकती है। हालांकि, यह दुष्प्रभाव बेहद दुर्लभ है। भारत में इस कंपनी की कोविशील्ड के 170 करोड़ डोज लगे है। वहीं राजस्थान के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि कोविशील्ड के टीकाकरण से ह्रदय रोग, ब्रेन हेमरेज व घातक दुष्प्रभाव का अब तक कोई मामला सामने नहीं आया है। डॉक्टरों का कहना है कि लोगों को चिंतित होने की जरूरत नहीं है। एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि टीके के साइड इफेक्ट दुर्लभ है और रिस्क भी 10 लाख में 1 है इसलिए घबराने की कोई जरूरत नहीं है।
एसएमएस अस्पताल जयपुर के ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉ. शशिमोहन शर्मा ने कहा कि राजस्थान में करोड़ो लोगों को कोविशील्ड डोज दी गई। दुष्प्रभाव तो पहली डोज के बाद कुछ समय में ही सामने आ जाते है। कई अध्ययनों में साबित हो चुका है कि कोविड संक्रमण से खून का थक्का बनने की आशंका बढ़ाता है। थक्के को टीकाकरण से जोड़ना सही नहीं है। हमारे यहां हुए अध्ययन में भी डेल्टा वैरिएंट को बीपी, ह्रदय रोग का बड़ा कारण बताया जा चुका है।
वहीं सफदरजंग अस्पताल के कम्युनिटी मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ जुगल किशोर ने कहा कि हर दवा साइड इफेक्ट के साथ आती है। कंपनी कहती है कि साइड इफेक्ट नहीं होगा तो यह गलत होता। कोविशील्ड की करोड़ो डोज दी गई है। कुदेक मामलों में साइड इफेक्ट चिंता की बात नहीं है। यह सामान्य है कि भारत में ऐसा कोई मामला नहीं आया है।
एम्स दिल्ली के कम्युनिटी विशेषज्ञ डॉ संजय राय ने कहा कि दुनिया भर में कोविड की सभी वैक्सीन को मंजूरी महामारी जैसे मुश्किल वक्त के मानदंडो के आधार पर दी गई थी। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जब महामारी फैली तो इसके दायरे में आने वाली प्रति दस लाख आबादी में से 15 पर जान का खतरा था। ऐसे में इस आबादी को वैक्सीन देकर महामारी की घातकता को 80 से 90 प्रतिशत तक घटाई गई। ऐसे में दुष्प्रभाव के मुकाबले लाभ अधिक थे। रोग प्रतिरोधी क्षमता दो तरह से विकसित होनी थी। एक टीके से और दूसरी संक्रमित होने पर कुदरती तौर पर। कुदरती तरीके में दुष्प्रभाव की गुंजाइश नहीं होती। देश में लगभग 100 प्रतिशत टीकाकरण हो गया। वहीं एक बड़ी आबादी को नेचुरल वैक्सीनेशन होने से कोरोना आम जुकाम बन गया। जापान या चीन जैसे देशों में नैचूरल वैक्सीनेशन नहीं हुआ, क्योंकि वहां टीकों से ही प्रतिरोधी क्षमता विकसित की गई। वहां आज भी जोखिम कम नहीं हुआ है। भारत में भी जोखिम है लेकिन घातकता कम हैञ अच्छी बात है कि दुष्प्रभाव की घातकता समय के साथ कम होती जाती हैञ कुछ मामलों में साइड इफेक्ट चिंता की बात नहीं है क्योंकि यह बहुत दुर्लभ मामलों में हो सकता है। भारत में कोविड वैक्सीन के कारण जान जाने का अभी कोई मामला नहीं आया है।

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