श्रीडूंगरगढ टाइम्स 10 मई 2020। धोरों की धरती और शौर्य, साहित्य, दानशीलता के लिए जाना जाने वाला हमारा श्रीडूंगरगढ आज अपना 138वां जन्मदिवस मना रहा है। आज ही के दिन संवत 1939 में ये शहर बसा था जो आज अपने गौरवशाली नगरवासियों की बदौलत आज 2020 के सफर तक पहुंच चुका है। श्रीडूंगरगढ टाइम्स अपने सभी पाठकों को इस गौरवशाली दिन की बहुत शुभकामनाओं के साथ प्रसिद्ध साहित्यकार चेतन स्वामी से जानते है हमारे श्रीडूंगरगढ का इतिहास और लॉकडाउन में आज के इस खास दिन को आप सभी कैसे मनाएं?
साहित्यकार चेतन स्वामी की नजर से जाने हमारे कस्बे के बारे में– आज श्रीडूंगरगढ़ का 138 वां स्थापना दिवस है। कालू के दौलतराम भादानी बीकानेर राज्य से निकटता रखते थे और वे भी चाहते थे कि नया शहर बसे और महाराजा डूंगरसिंह जी की गद्दी नशीनी में यत्किंचित सहयोग करनेवाले रीड़ी के संतोकचंद सेठिया ने भी ऐसी मनशा महाराजा डूंगरसिंह जी के समक्ष रखी थी। कुछ अन्य वणिक जनों ने भी नए शहर बसाए जाने की मांग की थी। यों भी जगात (कर) संग्रहण के दृष्टिकोण से यह उचित था कि सरदारशहर और रतनगढ़ के बाद बीच में एक नया थाना स्थापित हो। फिर बीकानेर राज्य की डांवाडोल आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए नया शहर बसाया जाना मुफीद जानकर महाराजा डूंगरसिंह जी ने ज्येष्ठ कृष्णा तृतीया संवत 1939 को पचासों मर्यादाओं के साथ एक विस्तृत पट्टा बनाकर पांच प्रमुख जनों को पंच मानते हुए सौंपा तथा एक सुन्दर रूप रेखा के साथ शहर को बसाना प्रारम्भ किया गया। ओसवाळ भादाणी तनसुखदास, बाहेती मूळचंद, लूणिया ईसरदास, मालू चौथमल,चौपड़ा हरखचंद ये पांच सज्जन थे जिनके हाथ में आज के दिन श्रीडूंगरगढ़ का पट्टा सौंपा गया । इन परिवारों को अपनी संतति को बड़े गर्व से यह बात बतानी चाहिए निकट के गांवों से लोग आकर बसते गए और 137 वर्षों में अब यह एक मुकम्मल शहर है। इसके निर्माण में हर कृतज्ञ जन का हाथ रहा है। उन सबको हम स्मरण करते हैं। उनके प्रति नतशिर हैं।
स्वामी ने कहा कि इस स्थापना के दिन को हमें उत्सव भाव से मनाना चाहिए। अपने अपने घरों में शुभ कहे जाने वाले लाप्सी का भोजन बनाएं-साथ में बड़ियों की सब्जी। इस दिन अपने पूर्वजोंको याद करें और यह संकल्प लेवें कि मैं भी अपने शहर की उन्नति में प्राण प्रण से योगदान करूंगा। आप सब के प्रति ढेरों शुभकामनाएं ।
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