श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 14 मई 2020। भारतवर्ष त्याग, तपस्या, साधना की भूमि है। यहाँ जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति अपनी – अपनी परम्परा के अनुसार आत्मकल्याण के पथ पर प्रस्थान करता रहता है। जैन परंपरा में भी जीवन के अंतिम समय को साधना में समायोजित करने के साथ आत्मोथान हेतु संलेखना द्वारा मृत्यु को भी सहर्ष स्वीकार करने की महान प्रथा है। इसी परंपरा को निभाते हुए श्रीडूंगरगढ के श्रीमती कमलादेवी बाफना ने 65 दिनों के संलेखना के साथ समाधिमरण का वरण किया।
27 फरवरी से प्रारंभ अपनी 12 दिनों की तपस्या के तुरंत बाद ही आचार्य श्री महाश्रमण जी की आज्ञा से श्रीडूंगरगढ सेवा केंद्र व्यवस्थापिका साध्वी श्री कनकरेखा और सहवर्तिनी साध्वियों और परिजनों की उपस्थिति में तिविहार संथारे का प्रत्याख्यान सहर्ष स्वीकार किया और 12 मई को चौविहार संथारे का प्रत्याख्यान करके पानी भी पीना छोड़ दिया।
संथारा साधिका श्राविका की तपस्या की महक क्षेत्र के साथ पूरे समाज में फैल गई।
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। अपने इस नश्वर देह के मोह को तजते हुए आत्मकल्याण के पथ को स्वीकार करके एक वीरांगना की भाँति साधना के समरांगण में वीरगति को प्राप्त करके मोक्ष की ओर प्रस्थित हुई।
श्रीडूंगरगढ टाइम्स संथारा साधिका श्रीमती कमलादेवी बाफना के आत्मोथान और परमगति प्राप्ति की मंगलकामना करता है।

