यूपी विधान सभा चुनाव के पांचवें चरण में अयोध्या शामिल है, जहां भाजपा के सामने सपा ने कड़ी चुनोती खड़ी की है। एक लंबे अरसे तक भाजपा देश में अयोध्या और राम मंदिर के मुद्दे पर चुनाव लड़ती आई है। इस बार भी मंदिर निर्माण आरम्भ होने के बाद चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की, मगर सफलता नहीं मिली। तब मुद्दे बदलने पड़े।
अयोध्या व मंदिर को लेकर अखिलेश, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी ने इस बार कोई टिप्पणी नहीं की, तभी ये मुद्दा बनने से रह गया। भाजपा को जिन्ना, आतंकवाद, पाकिस्तान आदि मुद्दों पर आना पड़ा।
पहले ये भी प्रचार किया गया कि मुख्यमंत्री योगी अयोध्या से ही चुनाव लड़ेंगे, क्योंकि सीएम रहते उन्होंने अनेक यात्राएं अयोध्या की की थी। मगर एन वक़्त पर भाजपा ने रणनीति बदली और योगी को गोरखपुर से लड़ने को कहा। अब अयोध्या पर सपा और भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
शुक्रवार को इसी क्षेत्र में अखिलेश रोड शो कर रहे हैं वहीं योगी ने यहां खुद कमान संभाल रखी है। सभी के प्रचार का आधार निर्माणाधीन राम मंदिर ही है। सोशल मीडिया पर भी मंदिर को लेकर वीडियो डाले जा रहे हैं ताकि मतदाता मंदिर के मुद्दे पर ही एकाग्र रहे। मतदाता इस मामले में अभी चुप है, मगर भाजपा को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है।
सपा महंगाई, बेरोजगारी को मुद्दा बनाने में लगी है। ये मुद्दे चूंकि हरेक को प्रभावित करते हैं, इसीलिए भाजपा को चिंता हो रही है। मंदिर मुद्दे के कारण इस क्षेत्र की अधिकतर सीटें पिछली बार भाजपा ने जीती थी, मगर इस बार राह आसान नहीं लगती।
पांचवें चरण तक आते आते भाजपा और सपा में जुबानी जंग तेज हो गई है, वहीं चुनाव परिणाम आने के बाद की स्थितियों पर भी दोनों पक्षों ने अंदरखाने बात शुरू कर दी है। गृह मंत्री अमित शाह अब भी रालोद को लुभाने में लगे है। उनका हाल ही में दिया बयान कि जयंत चौधरी गलत जगह चले गये है, आगे की रणनीति को दर्शा रहा है। अखिलेश पहले से ही 10 दलों के गठबंधन को लेकर चल रहे हैं। जिसका आधार सोशल इंजीनियरिंग है। तभी तो भाजपा की चिंता बढ़ी है। अब तक के चुनाव से ये तो स्पष्ट हो गया है कि पिछली बार की तरह इस बार किसी भी लहर का प्रभाव नहीं है। तभी तो राजनीति के जानकर कोई टिप्पणी करने से बच रहे हैं।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार