May 5, 2024

श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 26 फरवरी 2022। किसी भी बात पर आपस में भले ही कितना ही विवाद हो, विपदाएं हमें एकजुट करती है, वह भले ही परिवार हो, गांव हो या देश। समाजविदों की यह पंक्ति इन दिनों यूक्रेन-रूस युद्ध में सही साबित हो रही है और इसका प्रमाण है युद्ध के मैदान में फंसे श्रीडूंगरगढ़ के एक ओर बेटे के लिए क्षेत्र में हो रही दुआंए। श्रीडूंगरगढ़ कस्बे के वार्ड 10 में पानी की टंकी के पास रह रहे 70 वर्षीय जमालुद्दीन और उनकी पत्नी शकीला की बुजुर्ग आंखें युद्ध के मैदान में फंसे हुए अपने 34 वर्षीय बेटे आबिद की जान और उसे विदेश भेजने के लिए सर पर हुए 15 लाख के कर्ज को कैसे चुकाएंगें की चिंता में पथरा गई है। अपने मोहल्ले में परचून की छोटी सी दुकान करने वाले जमालदीन की चार बेटियों के बीच एकलौता बेटा है आबिद। और आबिद की पत्नी शबनम, उसके छोटे छोटे तीन बेटे और एक बेटी जिन्हें अभी युद्ध का मतलब भी नहीं पता वह भी सहमें हुए है। युद्ध की खबरों से घर में बन रहे डर के माहौल को देखते हुए टीवी चलाना भी बंद कर दिया गया है। घर की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए आबिद ने यूक्रेन जाकर टैक्सी चालक बनने का प्रयास किया। इन प्रयासों में घर में 15 लाख रुपए का कर्जा ओर सर पर हो गया। घर के सभी सदस्य हर दिन कई कई बार आबिद के सकुशल घर लौट आने की दुआंए मांग रहे है। जमालदीन के पडौसियों व आस पास के लोगों को भी परिवार के साथ सहानुभूति हो गई है एवं सभी चिंतित है।
पहले कोरोना और अब युद्ध, कर्ज से हाल बेहाल।
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। बुजुर्ग जमालदीन की बुढाती उम्र में यही सपना था कि बेटा विदेश जाकर घर की आर्थिक स्थिति में सुधार कर देवें। इसके लिए प्रयासों और परिचितों के माध्यम से यूक्रेन से टैक्सी ड्राईवर की नौकरी के लिए विजा की व्यवस्था भी की। पासपोर्ट से लेकर विजा तक सभी कार्यों में 15 लाख रुपए का कर्जा हो गया एवं ब्याज पर यह रकम हर दिन बढ़ रही है। दुर्भाग्य कुछ ऐसा रहा कि कर्जे के बाद जैसे तैसे पिछले साल जब आबिद यूक्रेन पहुंचा तो वहां कोरोना हद से अधिक भयावह रूप लिए हुआ था और उसे एयरपोर्ट से ही वापस डिपोर्ट कर दिया गया। अब करीब दो माह पहले वापस कम्पनी ने विजा भेजा तो वह यूक्रेन के पोलटावा शहर में पहुंचा। अभी तो उसकी पहली तनख्वाह भी घर नहीं आई के युद्ध शुरू हो गया। पोलटावा शहर रूसी सेना के कब्जे में आ गया एवं उसे वापस घर लौटना पड़ रहा है। अब परिजनों को यही डर सता रहा है कि अगर आबिद देश ना लौटा तो युद्ध की बुरी संभावनाएं है और दूसरी ओर अब घर आ गया तो कर्जा कैसे उतरेगा यह डर सता रहा है।

टाइम्स बना संवाद सेतु, परिजनों ने जताया आभार।

श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। युद्ध क्षेत्र से सकुशल लौट आने की चिंता में आबिद के परिजन उसकी कुशलता की सूचना पाने के लिए बेसब्र है। यूक्रेन में जैसे तैसे कर पोलैंड की सीमा तक पहुंच चुके आबिद नेटवर्क की कमी एवं मोबाईल फोन डिस्चार्ज होने से बचाने के लिए अपनी सूचना परिजनों को नहीं दे पाए एवं श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स को ही यह जिम्मेदारी दी। टाइम्स के प्रतिनिधि ने उनके घर पर पहुंच कर जब आबिद की सकुशलता एवं पोलैंड सीमा तक पहुंचने की जानकारी दी तो सबके चेहरों पर एक उम्मीद की किरण आ गई। परिजनों ने श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स को भी ढेरों दुआंए देते हुए आभार जताया है।

श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। आबिद की सलामती के लिए दुआ करते बुजुर्ग पिता व मासूम बच्चे।
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। बुजुर्ग पिता मोहल्ले में ही परचून की दुकान से आजीविका चलाते हैं।

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