महाराष्ट्र में अंधेरी पूर्व सीट के उपचुनाव में इस बात का फैसला होना था कि असली शिव सेना उद्धव ठाकरे का दल है या टूटकर अलग हुए एकनाथ शिंदे का गुट। अपने को असली शिव सेना साबित करने के लिए दोनों ने बढ़चढ़कर दावे किये। शिंदे के साथ भाजपा थी ही।
पहली लड़ाई तो उम्मीदवार के मामले में हुई। उद्धव ने इस सीट पर दिवंगत विधायक रमेश लटके की धर्मपत्नी ऋतुजा लटके को उम्मीदवार घोषित किया। ये उद्धव का मास्टर स्ट्रोक था। ऋतुजा ताई मुंबई महानगर पालिका में सेवारत थी। उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए सरकारी सेवा से सेवानिवृत्ति का आवेदन किया। मगर उस पर ही सियासत हो गई। उनके त्यागपत्र को सरकार ने स्वीकार ही नहीं किया और नामांकन की तारीख आ गई। जाहिर है, सरकार शिंदे – भाजपा की है। ये सभी जानते थे कि रमेश लटके की गहरी पकड़ अंधेरी की इस सीट पर थी और ऋतुजा ताई को सहानुभूति मिलती, वे मजबूत उम्मीदवार थी, इस बात को शिंदे और भाजपा जानते थे। उद्धव को इस मामले में पहली जीत न्यायालय से मिली। न्यायालय ने सरकार को तुरंत ऋतुजा ताई का त्यागपत्र स्वीकारने का आदेश दिया। शिंदे गुट की ये नैतिक हार थी।
शिंदे गुट को इस पूरे विवाद में इस बात का आभाष हो गया कि उनके गुट की जीत इस सीट पर सम्भव नहीं। हार मिली तो ये संदेश जायेगा कि असली शिव सेना उद्धव का ही गुट है। इस नैतिक हार से बचने के लिए शिंदे ने ये सीट शिव सेना की होने के बावजूद भाजपा के लिए छोड़ दी। इसे राजनीतिक हलके में शिंदे गुट की दूसरी हार माना गया।
उपमुख्यमंत्री फडणवीस ने जीत का दावा करते हुए भाजपा उम्मीदवार घोषित कर दिया। महाराष्ट्र में राजनीतिक परंपरा टूटती नजर आई। क्योंकि इस राज्य में दिवंगत विधायक के परिजन के लड़ने पर कोई दल उम्मीदवार न हीं उतारेगा, ये परंपरा है। मगर शिव सेना के विभाजन के बाद राजनीतिक कटुता महाराष्ट्र में बढ़ी है। उसी का परिणाम था कि सरकार में शामिल भाजपा ने जीत का दावा कर उम्मीदवार परंपरा तोड़ घोषित कर दिया। इस निर्णय का अंधेरी की जनता में रिएक्शन हुआ जो साफ साफ सामने आया।
शिंदे – फडणवीस ने इस बात की परवाह न करते हुए बड़ें जुलूस के साथ अपने उम्मीदवार का पर्चा दाखिल कराया। उद्धव गुट ने भी महाअगाडी के सभी प्रमुख नेताओं के साथ ऋतुजा ताई का पर्चा दाखिल करा दिया। अंधेरी का वोटर ताई के पक्ष में अपना रुख साफ साफ दिखाना शुरू कर दिया। शिंदे – फडणवीस की आलोचना भी वोटरों के बीच मुखरित थी।
इसी राजनीतिक रस्साकस्सी के मध्य राज ठाकरे की एंट्री हुई। वे शिव सेना से अलग हुए गुट के नेता व सीएम शिंदे से मिले। बंद कमरे में क्या बात हुई, पता नहीं मगर राज ठाकरे ने बाहर आकर बयान दिया और सीएम को पत्र भी लिखा। इस पत्र में उन्होंने राज्य की राजनीतिक परंपरा के अनुसार ताई के सामने उम्मीदवार न उतारने की अपील शिंदे से की। एक हलचल शुरू हुई। फिर शिंदे गुट के ही एक विधायक ने भी राज ठाकरे के सुर में सुर मिलाया। मसला गर्म हो गया। इसी मध्य एनसीपी प्रमुख शरद पंवार ने भी एक बयान में परंपरा की वकालत की और उम्मीदवार न उतारने की अपील सीएम व भाजपा से की। इन तीन बयानों का बड़ा असर हुआ।
शिंदे जनता के कटघरे में दिखे। सरकार में बड़ा हिस्सा तो भाजपा का है, उम्मीदवार भी उन्हीं का था। शिंदे उलझन में आ गये। शिंदे ने भाजपा नेताओं से बात की और उम्मीदवार हटाने का दबाव बनाया। भाजपा असमंजस में आ गई, क्योंकि इस तरह की बात मानना उसकी रणनीति के विरुद्ध था। मगर भाजपा को ये भी अहसास था कि महाराष्ट्र की सरकार चल ही शिंदे गुट के कारण रही है। फडणवीस ने आलाकमान से बात की और आखिरकार उम्मीदवार वापस लेने का निर्णय हुआ।
अब अंधेरी पूर्व सीट पर उद्धव गुट की ऋतुजा ताई की जीत महज औपचारिकता रह गई है। ये जीत उद्धव ठाकरे की जहां बड़ी जीत होगी वहीं उनके नेताओं व कार्यकर्ताओं का आत्म बल बढ़ाने वाली होगी। ये शिंदे गुट की हार को भी दर्शायेगी, जनता तो यही मानेगी। उपचुनाव के परिणाम के बाद एक बार फिर असली शिव सेना का मुद्दा गर्म होगा। इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम में भाजपा को नुकसान हुआ है, ये राजनीतिक विश्लेषक व अंधेरी के वोटर भी मानते है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार