आज से संसद का बजट सत्र आरम्भ हो रहा है, इस सत्र को पूरे साल में सबसे खास माना जाता है। क्योंकि इसमें आने वाले एक साल के लिए आर्थिक योजना तय होती है। नये कर, नई घोषणाएं और आर्थिक विकास की नीतियां बनती है। आजादी के बाद से इस सत्र को खास माना जाता रहा है क्योंकि सरकार देश के सामने अपना आर्थिक विजन रखती है।
मगर इस बार ये सत्र उस समय हो रहा है जब यूपी सहित पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव है और राजनीति पूरी तरह से गरमाई हुई है। इस कारण राजनीति में इस सत्र के डूब जाने की स्थिति है। वोट की राजनीति लोकतंत्रीय व्यवस्था पर आजादी के बाद से हावी होती रही है, इस बार भी इसी कारण ऐसा होना तय माना जा रहा है। वोट के कारण आर्थिक विचार पीछे छूटने की संभावना है।
संसद के जरिये सभी राजनीतिक दल पांच राज्यों के वोटर को सुर्खियां बटोर प्रभावित करेंगे, ये भूलेंगे कि वे सांसद है। जन प्रतिनिधि है। उनको केवल अपने दल और वोटर याद रहेंगे। जबकि संसद और सांसद केवल जन प्रतिनिधि होते हैं।
न्यूयार्क टाइम्स ने पेगेसस के बारे में खबर छापकर इस मुद्दे को फिर से जीवित कर दिया है, जिस पर जांच के लिए कमेटी पहले से बनी है। कांग्रेस, सपा, टीएमसी सहित सभी विपक्षी दल इस मामले को लेकर सरकार और भाजपा को घेरने की कोशिश करेंगे। इस कोशिश में ये मामला कम अपितु पांच राज्यों के चुनाव अधिक केंद्र में रहेंगे, क्योंकि यूपी, उत्तराखंड, गोवा सहित चार राज्यों में भाजपा की सरकार है। वोट भारी पड़ेगा आर्थिक मसले पर।
वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार भी घोषणाओं और उपलब्धियों के सहारे इन पांच राज्यों के वोटर को प्रभावित करने का प्रयास करेगी। अब तक का ये ही इतिहास रहा है। बजट में ये पांच राज्य केंद्र में रहेंगे और अब तक किये काम भी करीने से गिनाए जाएंगे, ताकि वोटर प्रभावित हो।
कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने केंद्रीय सूचना प्रोधोगिकी मंत्री के खिलाफ लोक सभा अध्यक्ष को पत्र लिख विशेषाधिकार हनन के नोटिस की तैयारी कर ली है। वहीं कांग्रेस महासचिव सुरजेवाला ने पेगेसिस पर बयान देकर इस मुद्दे को संसद में उठाने का संकेत किया है। टीएमसी बंगाल के राज्यपाल को लेकर प्रस्ताव लाने की घोषणा कर चुकी है। इस तरह के अनेक मामले संसद में उठने के संकेत हैं, जिनका जुड़ाव राजनीति से साफ साफ है, अर्थ नीति से तो नहीं है। इसी वजह से लगता है कि संसद का बजट सत्र ज्यादा हंगामेदार रहेगा। जिसके केंद्र में विधान सभा चुनाव होंगे, राजनीति होगी, पांच राज्यों के वोटर को प्रभावित करने की कोशिश होगी, अर्थ व्यवस्था या अर्थ नीति नहीं होगी।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार