श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 23 नवम्बर 2023। विधानसभा चुनाव- 2023 के लिए मतदान 25 नवम्बर को होना है एवं मतदान के लिए आज से 1 दिन शेष रहें है। ऐसे में श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स द्वारा प्रतिदिन विशेष कवरेज “सत्ता का संग्राम” टाइम्स के सभी पाठकों के लिए चुनाव की काऊंडाउन के साथ लगातार प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रतिदिन शाम को एक अंदरखाने की खबर के साथ क्षेत्र की चुनावी चर्चा पाठकों के समक्ष रखी जा रही है। इसी क्रम में पढ़ें आज की विशेष टिप्पणी।
पूरे कुंए में ही भांग, स्वीकार करो सरकार।
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। चुनावों को लेकर भले ही कितने ही आदर्शों की बात हो लेकिन चुनाव की शुरूआत ही छल से हो रही है तो चुनाव आदर्श कैसे होगा.? प्रायः सभी विधानसभा क्षेत्रों के चुनाव में मुख्य प्रत्याशियों द्वारा औसतन 2 से 5 करोड़ रुपए तक खर्च होने की संभावनाएं वाणिज्य विश्लेषकों द्वारा जताई जा रही है। इसकी जानकारी प्रशासन, चुनाव आयोग में बैठे प्रत्येक व्यक्ति से लेकर प्रत्याशी, कार्यकर्ता, वोटर सभी को है। लेकिन सब कुछ पता होते हुए भी प्रत्याशियों द्वारा नए खाता खुलवाना, पेमेंट चैक से करना, खर्च रजिस्टर मेंटेन करना, चुनाव आयोग द्वारा शैडो खर्च रजिस्टर बनाना, तीन-तीन बार दोनों रजिस्टरों का हिसाब मिलान करवाना और भी ना जाने कितने फॉर्मेलिटी बरती जा रही है। जब सबको ये पता ही है तो फिर क्यों इसे स्वीकार नहीं करते ये सवाल आज की युवा पीढी में जोरों शोरों से उछल रहा है। इतना बड़ा खर्च करना प्रत्याशियों के लिए मजबूरी भी है क्योंकि इस बार चुनाव करवाने में ही जब प्रति विधानसभा क्षेत्र में चुनाव आयोग द्वारा 1.5 करोड़ रुपए का खर्च किया जा रहा है तो सीधा का गणित क्यों नहीं समझ आ रहा कि चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी कितने खर्च करेगा.? चुनाव करवाना तो एक दिन का काम है लेकिन चुनाव लड़ना औसतन 20 दिनों तक खर्च करने की मजबूरी है। चुनाव आयोग द्वारा 28 लाख रुपए की खर्च सीमा एक प्रत्याशी के लिए निर्धारित की गई है एवं यह इतनी सहज फॉर्मेलिटी हो गई कि हर कोई बस लकीर के फकीर बनकर कागजों में इस खर्च के अंदर अंदर चुनाव भी लड़ ही लेगें। लेकिन चुनाव प्रत्येक भारतीय का सबसे प्रिय उत्सव होने के कारण हर युवा होता बच्चा इसे गंभीरता से देखने और समझने के प्रयास करता है। सर्वप्रथम उसे चुनावों में होने वाला भ्रष्टाचार इतना सहज स्वीकार होते देखने से ही अंदाज लगा लेना होगा की इन युवा के जीवन में ये कोरी आदर्श स्थापना का प्रयास कितना सफल हो सकेगा। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि कोई क्यों यह सच स्वीकार नहीं कर रहा, क्यों खर्च सीमा को वास्तविक आंकलन के अनुसार तय किया जा रहा है.? जिससे कम से कम सारा काम एक नम्बर में संभव करने के आदर्श की स्थापना तो हो सके।
ये बंधन तो पायल का बंधन है, बांधी जा रही है रिश्तेदारी।
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। हिंदी सिनेमा की हिट फिल्म करण-अर्जुन में परिवार में आपसी प्रेम के लिए गाया गया एक गीत “ये बंधन तो प्यार का बंधन है”, तो सभी ने सुना ही होगा। इसी गाने की तर्ज पर श्रीडूंगरगढ़ की विधानसभा चुनाव में गाना “ये बंधन तो पायल का बंधन है” खासा चर्चित हो रहा है। उड़ती-उड़ती खबरों में चर्चा है कि यहां एक प्रत्याशी द्वारा हजारों की संख्या में चांदी की पायलें बनवाई गई है एवं घरों में माताओं, बहिनों को शगुन के रूप में देकर नया पारिवारिक रिश्ता जोड़ा जा रहा है। अब यह भी जोरदार सा माहौल बनाने वाला कदम बन रहा है क्योंकि सामान्य स्थितियों में तो जनता केवल मतदाता होती है तो वोट देने तक ही सीमित है लेकिन जब बात परिवार की आ जाती है तो वोट देने वाले से आगे बढ़ कर वही लोग वोट दिलवाने वाले भी बन जाते है। अब ये पायल के बंधन में परिवार का प्यार शामिल हो पाता है या केवल पायल भी अन्य खर्च के जैसे चुनावी खर्च बन कर रह जाएगी इसका जवाब तो मतगणना ही बताएगी।
अभी तक नहीं खुले पत्ते, अब तो सवारी और वापसी ही तय करेगी खेमा।
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। श्रीडूंगरगढ़ के विधानसभा चुनावों में इस बार बडी जोरदार गुत्थी उलझ गई है। क्योंकि हर बार अपने अपने नेता के पाले में चुनाव शुरू होते ही जाकर खड़े होते समर्थक नजर आते थे। लेकिन इस बार चुनाव का प्रचार समाप्त होने के बाद भी यहां वोटरों ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले है। ऐसे में इस चुनाव में इस बार मतदाताओं के मन की थाह तभी मिल सकेगी जब मतदाता मतदान करने के लिए अपने घर से किस प्रत्याशी द्वारा उपलब्ध करवाए गए वाहन में बैठता है एवं मतदान करने के बाद वापसी में किस प्रत्याशी के खेमें में आकर ठहरने तक से पता चलने की चर्चा है। अब परिणाम चाहे जो भी हो इस बार क्षेत्र की जनता ने नेताओं को चुनाव लड़ना सीखा दिया है एवं साथ ही बंद कमरों में बैठक कर राजनीति के समीकरणों की घोषणांए करने वाले राजनीतिक विश्लेषकों को भी कमरों से बाहर निकल कर फील्ड में उतरने को मजबूर कर दिया है।