April 26, 2024

श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 30 अगस्त 2021। राजस्थली के मंच पर कवियत्री सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए जोधपुर से आई साहित्यकार डॉ. धनंजया अमरावत ने समाज को दिशा देने की जिम्मेदारी महिलाओं की बताई। डॉ. अमरावत ने कहा कि गिरते हुए मुल्यों की संरक्षिका महिलाएं ही हो सकती है और वे ही संस्कारों को मजबूत कर सकती है। महिलाएं अपनी लेखनी से समाज में परिवर्तन लाए जिससे वे साहित्य के क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी में आ सकें। उन्होंने कहा कि वर्तमान समाज मूल्यहीनता के दौर से गुजर रहा है ऐसे में सामाजिक मूल्यों के पुनरुत्थान के लिए महिलाएं लेखन से स्वच्छ समाज का निर्माण करें। मुख्य अतिथि श्रीडूंगरगढ़ की हरप्यारी देवी बिहाणी ने महिलाओं को आज आधुनिकता में डूबे हुए बच्चों को संस्कार देने की बात कहते हुए महिलाओं को संगठित होकर बुद्धिजीवी पुरुषों का साथ लेकर सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के प्रयास करने की बात कही। जयपुर से आई वरिष्ठ साहित्यकार शंकुतला शर्मा ने पहली बार राजस्थानी महिला सम्मेलन के आयोजन की सभी महिला रचनाकारों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि मायड़ भाषा हृदय में बसी है इसमें महिलाएं आगे आ कर सृजन करें। शर्मा ने रखपूण्यु रचना से भारतीय संस्कृति का चित्र मंच से उकेर दिया। डॉ जेबा रशीद ने राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए पैरवी करते हुए पूरे राजस्थान को एकजुट होने का आह्वान किया। साहित्य जगत में उदयपुर से बड़ा नाम विजयलक्ष्मी देथा ने राजस्थानी भाषा में दहेज लोभियों पर करारी रचना प्रस्तुत की। उनकी रचना “दहेज लोभियों के माथे में धोबा धूल नाखो” को खूब सराहना मिली। डॉ. रानी तंवर ने शानदार प्रस्तुति देते हुए ‘मायड़ ज्याबा दे संमदर पार’ सुनाई जो श्रोताओं द्वारा खूब सराही गई। उन्होंने बेटी के सपने और माँ द्वारा दी जाने वाली दुनियादारी की समझाइश का सुंदर दृश्य साकार कर दिया। बीकानेर से डॉ. सुधा आचार्य ने बेटी के जीवन में सपना देखने व सदैव उन सपनों के अधूरे रह जाने की रचना सुनाई। आचार्य ने बाप, भाई, पति, बेटे के सहयोग से सपने पूरे करने के सपने अधूरे रह जाने के बाद भी एक स्त्री द्वारा पुनः जिजीविषा के साथ सपना देखने की बात को ऐसे शब्दावली में पिरोया की श्रोताओं ने खूब दाद दी। विमला महरिया ने सभी सखियों की मनुवार में अपनी रचना सुनाई और झालावाड़ से आई प्रतिमा ने सरकारी भ्रष्टाचार व नैतिक पतन की बात पर सराहना बटोरी। जयपुर से सुनीता ने ‘दफ्तर वाली बीनणी’ सुना कर हास्य के साथ कामकाजी महिलाओं की समस्याओं को उजागर किया। जोधपुर से आई मधु ने महिला जीवन में ‘पगां रा छाला आपण साग चाला ला’ सुना कर सराहना हासिल की। कामना राजावत ने बचपन पर भावभरी रचना प्रस्तुति दी और बीकानेर मनीषा आर्य सोनीनलिनी पुरोहित ने राजस्थान का गौरव गान किया। तारा प्रजापत मातृ दिवस मनाने की बजाय माँ के साथ एक दिन बिताने पर भाव भरी रचना प्रस्तुत की तथा नगेन्द्रबाला बारहठ ने मां बेटी पर भावपूर्ण रचना सुना कर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। गांव से रोजगार के लिए शहर जाने वाली युवतियों के मन के भावों को जोशना राजपुरोहित ने सुनाया और इंद्रा ने उत्साह का गीत गाया। सुधा सारस्वत ने बोल का महत्व बताया, मान कंवर ने से कवि की शादी कवयित्री से होने की स्तिथि पर हास्य रंग बिखेरा, मंजू शर्मा राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग आलाकमान तक पहुंचाने की बात कही। दीप्ति परिहार, जयश्री कंवर ने राजस्थान की धरती के सौंदर्य का वर्णन किया तो संजू श्रीमाली ने पानी संरक्षण का संदेश दिया। डॉ कृष्णा आचार्य ने हाड़ा रानी की वीरता से मातृभूमि के लिए सर्वस्व न्योछावर करने का आह्वान किया व अर्चना राठौड़ ने शिवाजी के शौर्य को गाया। समारोह में कवयित्रियों ने जीवन के सभी रंग मंच से अपनी रचनाओं के माध्यम से साकार किए और समाज सुधार के लिए महिला जागृति का आह्वान किया।

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