यूपी में दो चरण की वोटिंग के बाद अब चुनावी रंगत परवान पर है, क्योंकि ये चरण सरकार की तस्वीर को काफी हद तक साफ कर देगा। इस चरण में सपा – रालोद गठबंधन की कड़ी टक्कर है। वहीं पंजाब में चुनाव अब आरपार की स्थिति में पहुंच गया है।
अवध और बुंदेलखंड की 16 जिलों की 59 सीटों पर इस चरण में वोटिंग होगी। पहले चरण में 58 और दूसरे चरण में 55 सीटों का निर्णय तो मतदाता ने ईवीएम में बंद कर दिया है। इस चरण का मतदान 20 फरवरी को होगा।
पश्चिमी यूपी, बुंदेलखंड और अवध की इन सीटों पर भाजपा के सामने कड़ी चुनोती है। 2017 के चुनाव में इस इलाके की 49 सीटें भाजपा ने जीती थी। उनको बरकरार रखना इस बार मुश्किल हो रहा है, इसलिए भाजपा को यहां ज्यादा जोर लगाना पड़ रहा है। पिछले चुनाव में यहां सपा कांग्रेस गठबंधन ने 9 सीटें जीती थी। इस बार कांग्रेस अलग चुनाव लड़ रही है, मगर रालोद सपा के साथ है। जिसके कारण ही मुकाबला कांटे का हो गया है।
बुंदेलखंड में पिछले चुनाव के समय राहुल गांधी ने खूब मेहनत की थी, इस बार प्रियंका ने यहां पसीना बहाया है। कांग्रेस को मिलने वाला वोट जहां भाजपा के लिए मुश्किल पैदा करेगा, वहीं बसपा सपा नेतृत्त्व वाले गठबंधन के लिए परेशानी है। अमित शाह इस इलाके में भी घूम घूमकर वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं।
इस चरण की 59 सीटों में से 30 सीटें वो हैं, जिन पर यादव वोटरों की बहुलता है। 9 जिलों में हार जीत का फैसला यादव वोट करता है, जिस पर सपा का प्रभाव देखा जा रहा है। उसे मुस्लिम, जाट मतदाताओं का सहारा भी मिल रहा है। अखिलेश ने भी इसी इलाके की करहल सीट से चुनाव लड़ा है ताकि यादव वोटों का ध्रुवीकरण हो। वहीं भाजपा गैर यादव वोटों को साथ लाने के लिए ध्रुवीकरण के लिए पसीना बहा रही है। इसी कारण तीसरा चरण यूपी विधान सभा की तस्वीर साफ करेगा। कांटे के मुकाबले में जो यहां से लीड करेगा, वो आगे निकल जायेगा। किसान नेता भी अब इस इलाके में सक्रिय हो चुके हैं, उनका भी असर पड़ेगा। ये चरण सभी राजनीतिक दलों की कड़ी परीक्षा लेगा।
पंजाब में अब कांग्रेस व आप के बीच आरपार की लड़ाई हो रही है, दोनों के समीकरण बिगड़ने का काम अकाली दल – बसपा गठबंधन कर रहा है। भाजपा – कैप्टन की जोड़ी का असर कुछ सीटों पर ही दिख रहा है। सीएम चन्नी का चेहरा जहां अब चुनावी मुद्दा बन गया है, वहीं राहुल और प्रियंका का यहां प्रचार कांग्रेस के लिए संजीवनी बन रहा है। इन दोनों की उपस्थिति से कांग्रेस की अंतर्कलह को थामा जा रहा है। बारबार सिद्धू छलकते हैं, पर ये दोनों उनको संतुलित कर देते हैं। वहीं केजरीवाल ने भी यहां दिल्ली मॉडल को आधार बना वोटर को रिझाने के प्रयास किये है। सीएम चेहरा मान का है, उसका भी लाभ मिल रहा है। चन्नी की सादगी यहां वोटरों में खास असर डाल रही है। कांग्रेस और आप के बीच लड़ाई कांटे की है, इसीलिए मतदाता मौन है। ये मौन ही चुनावी समर को रोचक बनाये हुए है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार