July 14, 2025
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श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 10 नवबंर 2024। रबी फसल की बुवाई के सीजन में किसानों को कई जगह डीएपी खाद नहीं मिल रही। इससे किसान खासे परेशान हो रहें है। इसके पीछे बड़ा कारण सप्लाई और डिमांड में अंतर होना बताया जा रहा है। मगर कई किसान नैनो डीएपी का इस्तेमाल करके इस परेशानी से बच रहें है। इफको की ओर से नैनो डीएपी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध करवाई जा रही है। यह पर्यावरण के अनुकूल और सस्ती भी है। इफको बीकानेर के सहायक क्षेत्र प्रबंधक विजयसिंह लांबा ने बताया कि नैनो डीएपी यूरिया से किसान को कई फायदे है। इसकी कभी किल्लत नहीं होती और आधा लीटर की बोतल 600 रूपए में सभी सहकारी समितियों पर उपलब्ध हो रही है। उन्होंने बताया कि रबी में एक साथ बुवाई होने से इसकी डिमांड ज्यादा रहती है। जबकि कई कंपनियों ने डीएपी का उत्पादन कम कर दिया। जबकि इफको की ओर से नैनो डीएपी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराई जा रही है। खरीदने वाले किसानों को 2 लाख का दुर्घटना बीमा भी दिया जा रहा है। सहाकरी समिति के रामनिवास नैण ने बताया कि दानेदार डीएपी फसल पर 40 प्रतिशत ही असर कर पाती है और नैनो डीएपी का फसल पर 90 प्रतिशत तक असर रहता है। दानेदार डीएपी से जमीन की उर्वरता भी प्रभावित होती है जबकि नैनो से जमीन की उर्वरता खराब नहीं होती है। ये कई मायनों में बेहतर साबित हो रही है।

दानेदार डीएपी का असर एक सप्ताह में ही खत्म, नैनो है बेहतर।

श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। दानेदार डीएपी की किल्लत हर वर्ष रबी से पहले होती है। इसका एक कट्टा 1350 रूपए में मिलता है। जबकि नैनो डीएपी 600 रूपए की एक बोतल मिल रही है। किसानों के लिए नैनो डीएपी काफी सस्ती पड़ती है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार दोनदार डीएपी का असर एक सप्ताह तक ही रहता है। धूप हवा आदि से यह उड़ जाता है। पानी के साथ घुलकर जमीन में चला जाता है। डीएपी 100 किलो डालने पर उसका 40 प्रतिशत हिस्सा ही फसल का मिल पाता है। कुछ पानी के साथ नीचे चला जाता है। कुछ मात्रा हवा में भी उड़ जाती है। क्षेत्र के गांव रीड़ी के किसान रामचंद्र जाखड़ ने बताया कि वे दो साल से लगातार नैनो यूरिया डीएपी का इस्तेमाल कर रहें है। इससे उनका खाद बीज का खर्च घटा है। बुवाई के वक्त बीजोपचार करने से बीज अच्छी तरह अंकुरित होता है और बाद में वृद्धि भी अच्छी होती है। जाखड़ ने कहा कि नैनो यूरिया डीएपी की कमी भी नहीं है। नैनो डीएपी का छिड़काव पौधों की पत्तियों पर किया जाता है। यह किसान के लिए लाभदायक होने के साथ बेहतर विकल्प है।