राजनीति आजकल चुनाव के समय ज्यादा बदलती है। सरकारें चुनाव से थोड़ा पहले जहां जनता के लिए राहत के पिटारे खोलती है, वहीं राजनेता जो दल भारी लगता है उस तरफ झुकने में जरा भी गुरेज नहीं करते। दल बदलने का सिलसिला भी चुनाव से पहले ही ज्यादा गति पकड़ता है। लोकतंत्र की सेहत के लिए इसे सही तो माना नहीं जा सकता। इन दिनों पंजाब और उत्तराखंड की राजनीति में यही देखने को मिल रहा है।
पंजाब में कांग्रेस में चुनाव से पहले सीएम बदला तो पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पार्टी छोड़ नया दल बना लिया। उस दल का समझौता भाजपा से हो रहा है, जिसके खिलाफ पिछले चुनाव में वे नेता थे। अब कांग्रेस में भी कईयों की आस्था बदलने की तैयारी है। वहीं पिछले विधान सभा चुनाव में कुछ ठीक प्रदर्शन करने वाली आम आदमी पार्टी इस बार ज्यादा जोर लगा रही है, वो भी अन्य दलों के लोगों को साथ ला रही है।
चंडीगढ़ नगर निगम के चुनाव परिणामों ने नये समीकरण के संकेत भी दिए हैं। पहली बार निगम चुनाव लड़कर भी आम आदमी पार्टी बड़े दल के रूप में उभरी है, ये पंजाब की राजनीति में बड़ा चेंज है। भाजपा का अकाली दल से साथ छूटा तो उन्हें कांग्रेस से बाहर आये कैप्टन का साथ मिल गया। मगर अब चंडीगढ़ निगम चुनाव परिणामों के बाद पंजाब में नेताओं के बदलने की संभावना बढ़ गई है, जाहिर है राजनीतिक तस्वीर भी बदलेगी। आने वाले दिनों में यहां राजनीति के बदलने के कई रंग दिख सकते हैं। जिनकी शुरुआत भी हो गई।
उत्तराखंड में भी विधान सभा चुनाव होने हैं। यहां भी बदलने का सिलसिला चल रहा है। पहले भाजपा के नेता कांग्रेस में आये तब हरीश रावत ने बगावती सुर निकाले। उन सुरों को थामने का काम आलाकमान ने किया तो भाजपा में असंतोष व सब कुछ ठीक न होने का सिलसिला शुरू हो गया। पंजाब में कांग्रेस तो उत्तराखंड में भाजपा के कई नेता संशय के घेरे में है। जो विधान सभा चुनाव आते आते चेहरा बदल सकते हैं, ऐसा राजनीति के विश्लेषक मानने लगे गये हैं।
बदलाव चुनाव से पहले ही क्यों, अब इस सवाल पर वोटर भी गंभीर होने लग गया है। ये बदलाव वाले नेताओं के लिए चेतावनी है। जिसका असर दोनों राज्यों में पड़ेगा, ये चुनावी सर्वे संकेत दे रहे हैं।
मगर सवाल लोकतंत्र का है। एन चुनाव से पहले राहत और दल बदल शुभ संकेत नहीं। राजनीति इसको थामेगी, ये तो लगता नहीं। इस पर लगाम तो जनता ही लगा सकेगी। इस बार जनता इस मूड में लग तो रही है। यदि ये मूड चुनाव तक बना रहा तो बदलने वालों को चकित करेगा, मगर लोकतंत्र को जरूर खुश करेगा। अब तो समय बतायेगा कि लोकतंत्र क्या रंग दिखाता है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार