April 26, 2024

श्रीडूंगरगढ टाइम्स 28मई, 2019। सफेद सोना यानी नरमा या कपास की खेती किसानो के लिए सफेद सोना नहीं वरन् खोटा सोना साबित हो रहा है। हरियाणा और पंजाब से राजस्थान आई यह प्रमुख व्यापारिक फसल किसानों की स्थिति सुधारने के लिए अपनाई गयी। परन्तु श्रीडूंगरगढ क्षेत्र में किसानों को नरमा अब रूला रहा है। किसानों ने नरमा बोया की आमदनी से उनकी आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार हो सके। हरियाणा, पंजाब में किसानों को नरमा खराब होने पर सरकारों को मुआवजा जारी करना पड़ता है। परन्तु यहां कम ही किसान नरमें की बुआई करवाते है। और राजनीतिक व प्रशासनिक जागरूकता का अभाव होने के कारण इन्हें कोई सरकारी सहायता का प्रावधान भी नहीं है। इस क्षेत्र में चले भयंकर अंधड़ और गर्मी ने किसानों की नरमा की फसल को लील लीया। झंझेऊ के किसान भागीरथ सिंह ने बताया कि अधंड़ से नरमा की फसल के पत्तों पर आयी मिट्‌टी ने पत्तों को छलनी कर दिया जिससे फसल का नुकसान हो गया। बादनु के किसान सांवरमल आचार्य ने 4 बीघा में नरमा बुवाई की। सांवरमल ने टाइम्स को बताया कि मिट्टी के अंधड़ से जड़े निकल गयी तो हाथ से आज वापस तुरपाई कर रहे है। शिवसिंह ने 7 बीघा में नरमे की खेती की जिसमे 4 बीघा बिल्कुल खराब हो गयी जिसमे उन्होंने दुबारा बुवाई करवाई है। किसानों को इस फसल से उम्मीद थी परन्तु इनकी आशाओं पर पानी फिर गया। ये नरमा खोटा सोना बन गया व किसानो को हजारों की चपत लग गयी। नरमें में मेहनत भी अधिक है। अब दुबारा मेहनत भी हो रही है। काजरी में कार्य कर चुके एग्रिकल्चर एक्सपर्ट सोनु गुर्जर ने बताया कि नरमा की खेती करने वाले किसानों को हाथ से बुआई करते हुए पौधे डोलियों पर (मैड़ों) पर लगाने चाहिए व गोबर की खाद साथ में डालते जाना चाहिए। गुर्जर ने कहा कि वैल बिगेन इज हाफ डन यानी किसी काम की शुरूआत अच्छी हो तो समझ ले आधा काम हो गया। यही बात खेती में भी लागु है।

श्रीडूंगरगढ टाइम्स। दोबारा हाथ से नरमें की रोपाई कर रहे है किसान।

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