श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 30 अगस्त 2021। 🚩श्री गणेशाय नम:🚩
शास्त्रों के अनुसार तिथि के पठन और श्रवण से माँ लक्ष्मी की कृपा मिलती है ।
वार के पठन और श्रवण से आयु में वृद्धि होती है।
नक्षत्र के पठन और श्रवण से पापो का नाश होता है।
योग के पठन और श्रवण से प्रियजनों का प्रेम मिलता है। उनसे वियोग नहीं होता है ।
*करण के पठन श्रवण से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है ।
इसलिए हर मनुष्य को जीवन में शुभ फलो की प्राप्ति के लिए नित्य पंचांग को देखना, पढ़ना चाहिए ।
📜 आज का पंचांग 📜
☀ 30 – Aug – 2021
☀ Sri Dungargarh, India
☀ पंचांग
🔅 तिथि अष्टमी 26:02:32
🔅 नक्षत्र कृत्तिका 06:39:32
🔅 करण :
बालव 12:45:39
कौलव 26:02:32
🔅 पक्ष कृष्ण
🔅 योग व्याघात 07:44:53
🔅 वार सोमवार
☀ सूर्य व चन्द्र से संबंधित गणनाएँ
🔅 सूर्योदय 06:11:06
🔅 चन्द्रोदय 23:49:59
🔅 चन्द्र राशि वृषभ
🔅 चन्द्र वास दक्षिण
🔅 सूर्यास्त 18:57:52
🔅 चन्द्रास्त 13:09:00
🔅 ऋतु शरद
☀ हिन्दू मास एवं वर्ष
🔅 शक सम्वत 1943 प्लव
🔅 कलि सम्वत 5123
🔅 दिन काल 12:46:45
🔅 विक्रम सम्वत 2078
🔅 मास अमांत श्रावण
🔅 मास पूर्णिमांत भाद्रपद
☀ शुभ और अशुभ समय
☀ शुभ समय
🔅 अभिजित 12:08:56 – 13:00:03
☀ अशुभ समय
🔅 दुष्टमुहूर्त :
13:00:03 – 13:51:10
15:33:24 – 16:24:31
🔅 कंटक 08:44:28 – 09:35:35
🔅 यमघण्ट 12:08:56 – 13:00:03
🔅 राहु काल 07:46:57 – 09:22:48
🔅 कुलिक 15:33:24 – 16:24:31
🔅 कालवेला या अर्द्धयाम 10:26:42 – 11:17:49
🔅 यमगण्ड 10:58:38 – 12:34:29
🔅 गुलिक काल 14:10:20 – 15:46:10
☀ दिशा शूल
🔅 दिशा शूल पूर्व
☀ चन्द्रबल और ताराबल
☀ ताराबल
🔅 भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, आश्लेषा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, रेवती
☀ चन्द्रबल
🔅 वृषभ, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मीन
📜 चोघडिया 📜
🔅अमृत 06:11:06 – 07:46:57
🔅काल 07:46:57 – 09:22:48
🔅शुभ 09:22:48 – 10:58:38
🔅रोग 10:58:38 – 12:34:29
🔅उद्वेग 12:34:29 – 14:10:20
🔅चल 14:10:20 – 15:46:10
🔅लाभ 15:46:10 – 17:22:01
🔅अमृत 17:22:01 – 18:57:52
🔅चल 18:57:52 – 20:22:05
🔅रोग 20:22:05 – 21:46:18
🔅काल 21:46:18 – 23:10:31
🔅लाभ 23:10:31 – 24:34:44
🔅उद्वेग 24:34:44 – 25:58:57
🔅शुभ 25:58:57 – 27:23:10
🔅अमृत 27:23:10 – 28:47:23
🔅चल 28:47:23 – 30:11:36
❄️लग्न तालिका ❄️
🔅 सिंह स्थिर
शुरू: 05:15 AM समाप्त: 07:32 AM
🔅 कन्या द्विस्वाभाव
शुरू: 07:32 AM समाप्त: 09:48 AM
🔅 तुला चर
शुरू: 09:48 AM समाप्त: 12:08 PM
🔅 वृश्चिक स्थिर
शुरू: 12:08 PM समाप्त: 02:27 PM
🔅 धनु द्विस्वाभाव
शुरू: 02:27 PM समाप्त: 04:31 PM
🔅 मकर चर
शुरू: 04:31 PM समाप्त: 06:14 PM
🔅 कुम्भ स्थिर
शुरू: 06:14 PM समाप्त: 07:42 PM
🔅 मीन द्विस्वाभाव
शुरू: 07:42 PM समाप्त: 09:08 PM
🔅 मेष चर
शुरू: 09:08 PM समाप्त: 10:44 PM
🔅 वृषभ स्थिर
शुरू: 10:44 PM समाप्त: अगले दिन 00:40 AM
🔅 मिथुन द्विस्वाभाव
शुरू: अगले दिन 00:40 AM समाप्त: अगले दिन 02:55 AM
🔅 कर्क चर
शुरू: अगले दिन 02:55 AM समाप्त: अगले दिन 05:15 AM
❇️ कृष्ण जन्माष्टमी महत्व ❇️
कारा-गृह में देवकी की आठवीं संतान के रूप में जन्मे कृष्ण के नामकरण के विषय में कहा जाता है कि आचार्य गर्ग ने रंग काला होने की वजह से इनका नाम “कृष्ण” दिया था। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा नगर में हुआ और उनका बचपन गोकुल, वृंदावन, नंदगाँव, बरसाना, द्वारिका आदि जगहों पर बीता था। महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद श्री कृष्ण ने 36 साल तक द्वारिका पर राज किया। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था, इसीलिए इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी कृष्णाष्टमी, गोकुलाष्टमी, कन्हैया अष्टमी, कन्हैया आठें, श्री कृष्ण जयंती, श्री-जी जयंती आदि जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है।
📜जन्माष्टमी व्रत और पूजा विधि📜
जन्माष्टमी व्रत में अलग-अलग जगहों पर लोग अपनी सच्ची श्रद्धा से अलग-अलग तरीके से पूजा-व्रत करते हैं। कुछ लोग जन्माष्टमी के एक दिन पहले से व्रत रखते हैं, तो वहीँ अधिकांश लोग जन्माष्टमी का व्रत अष्टमी तिथि के दिन उपवास और नवमी तिथि के दिन पारण कर के करते हैं। इस व्रत को स्त्री और पुरुष दोनों ही रख सकते हैं।
जन्माष्टमी व्रत को करने वाले को व्रत से एक दिन पहले यानि सप्तमी को सात्विक भोजन करना चाहिए।
अष्टमी को यानि उपवास वाले दिन प्रातःकाल उठकर स्नानादि करें। फिर सभी देवी-देवताओं को नमस्कार करें और पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं।
अब हाथ में जल और पुष्प आदि लेकर व्रत का संकल्प लें और पूरे विधि-विधान से बाल गोपाल की पूजा करें।
दोपहर के समय जल में काले तिल मिलाकर दोबारा स्नान करें। अब देवकी जी के लिए एक प्रसूति गृह बनाएँ। इस सूतिका गृह में एक सुन्दर बिछौना बिछाकर उसपर कलश स्थापित कर दें।
अब देवकी, वासुदेव, बलदेव, नन्द, यशोदा और लक्ष्मी जी का नाम लेते विधिवत पूजा करें।
रात में 12 बजने से थोड़ी देर पहले वापस स्नान करें। अब एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा लीजिए और उसपर भगवान् कृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
कृष्ण को पंचामृत और गंगाजल से स्नान कराने के बाद उन्हें नए वस्त्र पहनाकर उनका श्रृंगार करें।
बाल गोपाल को धूप , दीप दिखाए, उन्हें रोली और अक्षत का तिलक लगाकर, माखन-मिश्री का भोग लगाएँ। गंगाजल और तुलसी के पत्ते का पूजा में अवश्य उपयोग करें। विधिपूर्वक पूजा करने के बाद बाल गोपाल का आशीर्वाद लें।
पं. विष्णुदत्त शास्त्री {8290814026}


