श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 23 अक्टूबर 2020।🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
शास्त्रों के अनुसार तिथि के पठन और श्रवण से माँ लक्ष्मी की कृपा मिलती है ।
* वार के पठन और श्रवण से आयु में वृद्धि होती है।
* नक्षत्र के पठन और श्रवण से पापो का नाश होता है।
* योग के पठन और श्रवण से प्रियजनों का प्रेम मिलता है। उनसे वियोग नहीं होता है ।
* करण के पठन श्रवण से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है ।
इसलिए हर मनुष्य को जीवन में शुभ फलो की प्राप्ति के लिए नित्य पंचांग को देखना, पढ़ना चाहिए ।
🌻शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2020🌻
सूर्योदय: 🌄 06:46
सूर्यास्त: 🌅 17:56
चन्द्रोदय: 🌝 13:23
चन्द्रास्त: 🌜00:01
अयन 🌕 दक्षिणायने (उत्तरगोलीय)
ऋतु: ❄️ शरद
शक सम्वत: 👉 1942
विक्रम सम्वत: 👉 2077
मास 👉 आश्विन
पक्ष 👉 शुक्ल
तिथि: 👉 सप्तमी (06:57 तक)
नक्षत्र: 👉 उत्तराषाढा (25:28 तक)
योग: 👉 धृति (25:23 तक)
प्रथम करण: 👉 वणिज (06:57 तक)
द्वितीय करण: 👉 विष्टि (18:52 तक)
अभिजित मुहूर्त 👉 11:58-12:45
राहुकाल 👉 10:57-12:21
दिशाशूल 👉 पश्चिम
चंद्रवास 👉 पूर्व 07:02 तक
👉 दक्षिण
चंद्र राशि 👉 धनु 07:02
👉 मकर
सूर्य राशि 👉 तुला
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☄चौघड़िया विचार☄
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॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ – चर =06:46-08:10
२ – लाभ =08:10-09:33
३ – अमृत =09:33-10:57
४ – काल =10:57-12:21
५ – शुभ =12:21-01:45
६ – रोग =01:45-03:08
७ – उद्वेग =03:08-04:32
८ – चर =04:32-05:56
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ – रोग =05:56-07:32
२ – काल =07:32-09:08
३ – लाभ =09:08-10:45
४ – उद्वेग =10:45-12:21
५ – शुभ =12:21-01:57
६ – अमृत =01:57-03:34
७ – चर =03:34-05:10
८ – रोग =05:10-06:47
श्री माँ दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। संसार में कालो का नाश करने वाली देवी कालरात्री ही है। भक्तों द्वारा इनकी पूजा के उपरांत उसके सभी दु:ख, संताप भगवती हर लेती है। दुश्मनों का नाश करती है तथा मनोवांछित फल प्रदान कर उपासक को संतुष्ट करती हैं। दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की भाँति काला है, बाल बिखरे हुए, गले में विद्युत की भाँति चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड की तरह गोल हैं, जिनमें से बिजली की तरह चमकीली किरणें निकलती रहती हैं। इनकी नासिका से श्वास, निःश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं। इनका वाहन ‘गर्दभ’ (गधा) है। दाहिने ऊपर का हाथ वरद मुद्रा में सबको वरदान देती हैं, दाहिना नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है।
1.ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते।।
2.जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तु ते।।
3.धां धीं धूं धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु।।
(पंडित विष्णुदत्त शास्त्री)