May 20, 2024

भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में कल का दिन शर्मशार करने वाले दिन की पहचान से बच गया, जिसके लिए भारतीयों की आस्था की प्रतीक गंगा मैया का सबको वरदान माना जाना चाहिए। लोकतंत्र में इस तरह के काम की अपेक्षा शायद ही किसी ने की होगी। राजनीति, सत्ता व व्यवस्था को अपनी कार्यप्रणाली पर आत्मावलोकन करना चाहिए।
बात है देश के उन पहलवानों की जिन्होंने अपने खेल के बूते पूरी दुनिया मे तिरंगा लहरा भारत का मान बढ़ाया था। वे ही पहलवान एक महीनें से जंतर मंतर पर आंदोलन कर रहे थे। 28 तारीख को जब वे नये संसद भवन की तरफ प्रदर्शन करने के लिए बढ़े तो उनको जबरदस्ती रोका गया। इतना ही नहीं इन राष्ट्र के नोनिहालों के साथ बर्बरता का व्यवहार किया गया। जन दबाव के कारण बाद में छोड़ा गया, मगर मुकदमे भी उनके खिलाफ दर्ज किए गये। देश के जिस नागरिक ने पहलवानों के साथ हुए दुर्व्यवहार की तस्वीरें देखी, वीडियो देखे, उसका सिर शर्म से झुक गया। मगर सत्ता, व्यवस्था इस पर भी मौन रही।
हद तो तब हुई जब ये पहलवान हिरासत से बाहर आने के बाद जब वापस जंतर मंतर जाने लगे तो उनको रोक दिया गया और उस स्थान पर धरना लगाने को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। उन्हें वापस उनके राज्य जाने को मजबूर किया गया। उसमें भी पुलिस उनके पीछे लगी रही। पदकधारी पहलवानों ने जंतर मंतर पर जो टेंट लगाया, उनका जो सामान था, उसे भी जब्त कर लिया गया। सत्ता में जरा भी हलचल नहीं हुई।
आज पदक जीत राष्ट्र का गौरव बढ़ाने वाले इन पहलवानों ने यकायक निर्णय लिया कि हम अपने सारे पदक मां गंगा में प्रवाहित कर उनको सौंप देंगे। इस सूचना के फैलते ही अफरातफरी मच गई। अनेक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों ने पदक न बहाने की अपील की और सरकार के व्यवहार की निंदा की। साक्षी मलिक, विनेश फोगाट व बजरंग पूनिया हरिद्वार पहुंच गये। उनका कहना था कि पदक हम पीएम को नहीं सौपेंगे, उन्होंने हमारी बात तक नहीं सुनी। अब मां गंगा को सौंपेंगे। तीनों पहलवान हर की पौड़ी के पास बैठ गये और रोने लगे। उनकी आंखों से आंसुओं की गंगा बह रही थी। इसी बीच किसान यूनियन, खाप पंचायतें सक्रिय हो गई। वे दौड़ पड़े हरिद्वार की तरफ। कुछ बुरा होता उससे पहले किसान नेता नरेश टिकेत, खाप नेता उनके पास पहुंच गये। रोते पहलवानों को संभाला और बहुत मनाया। टिकेत ने आश्वासन दिया कि हमें पांच दिन का समय दो, हम बड़ा निर्णय करेंगे। उस पर ही खिलाड़ी रुके, पदक टिकेत को सौंप दिये। बमुश्किल रोते हुए पहलवानों को किसान वापस लेकर मुड़े।
इस घटना से देश का हर संवेदनशील नागरिक आहत है और सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया भी दे रहा है। मगर सरकार के किसी भी जिम्मेवार प्रतिनिधि की कोई प्रतिक्रिया नहीं है। लोकतंत्र है, जनता की चुनी सरकार है, कुछ तो बोले, कुछ तो निर्णय करे।
ये अवाम सब देख रही, सुन रही है
चुप है, मगर आंख खुली रख रही है
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार

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