April 24, 2024

श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 21 जनवरी 2023। श्रीडूंगरगढ़ कस्बे के नेशनल हाइवे के 30 मीटर की दूरी के अंदर बने हुए पक्के निर्माणों के खिलाफ प्रशासन सख्त हुआ है। तोड़फोड़ की कार्रवाई को अंजाम देते हुए हाइवे अथॉरिटी अपनी भूमि खाली करवा रही है। आमजन के मन मे बवाल मचा है और प्रशासन की इस कार्रवाई पर कई सवाल उठ रहे है। सवाल लाजमी है क्योंकि बिना किसी सड़क विस्तार या बिना किसी शिकायत के केवल अधिकारियों की जागरूकता को दर्शाने के लिए की जा रही इस कार्रवाई को करने का पक्षपाती तरीका नागरिकों को नजर आ रहा है। सरकार के सबसे बड़े सदन विधानसभा में कुछ वर्षों पहले तत्कालीन विधायक द्वारा सवाल लगाया गया था और उसके जवाब में प्रशासन ने स्वयं श्रीडूंगरगढ़ की आबादी क्षेत्र में आमजन के अलावा बड़ी संख्या में नेताओं और सरकारी कार्यालयों का अतिक्रमण माना था। लेकिन अब की जा रही कार्रवाई में केवल आमजन के निर्माण ही निशाने पर आने से कई सवाल प्रशासन पर उठ रहे है। आज ये विशेष अनकही, अनसुनी टिप्पणी में पढ़ें जनता के बीच हर घर हर नुक्कड़ पर तैर रहें सवालों का दर्द।

श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 21 जनवरी 2023। श्रीडूंगरगढ़ इलाको तो एकदम सुनो पड्यो है, अठे जनता रे भला री बात करण हाला जननेता री तगड़ी कमी लाग है। अबार कस्बा में 192 जणा री दुकान, मकान और रोजगार रो साधन मटियामेट करण खातिर राज का सरदार उतावला हो राख्या है। पण जनता री सुनाई करण हालो कोई कोणी, मजा री बात आ है कि अठे इति ज्यादा राजनीतिक सुनवाड़ पेली कदी कोणी देखेड़ी। इति सुनवाड़ के सरकारी कब्जा न्यारा और जनता रा कब्जा न्यारा बरतीज रिया है। अबार कोई इसो नेतो कोणी जको प्रशासन ने के सके कि पेली खुद रे गिरेबान में तो झांको, खाली जनता रे रोजगार के लारे क्यूं पड्या हो।
अठे हाइवे री जमीन पर तो 30 मीटर के मायने कब्जा सरकारी भी खूब है, बडोड़ा नेतावां रा कब्जा भी है और सरकारी अनुमति पर लाग राख्या सरस रा बूथ भी है। पण सरकारी जोर बापड़ी जनता माथ ही चाले है। जका रोज को आपरो व्यापार कर आपरो घर चलावे बे गरीब ही राज के निशाना पर क्यों..? ओ सवाल ई सुना पड़या श्रीडूंगरगढ़ में गूंज है।

ग्लानि में भर गए, किसे कहें.?
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। नेशनल हाइवे के नवनिर्माण के बाद भी श्रीडूंगरगढ़ क्षेत्र लंबे समय तक सर्विस रोड से वंचित रहा। सर्विस रोड बन भी गई तो होटलों की चौकियां, मनमर्जी के हाइवे कट, तोड़ी गई रेलिंग, आवश्यकता से बड़ा घुमचक्कर सर्किल, सर्किल पर अटे पड़े नेताओ के पोस्टर सहित कई ऐसी स्थितियां है जिनके कारण हाइवे पर हादसों के हालात बन जाते है। इन सभी स्थितियों को प्रशासन सुधारे यह मांग तो जनता ने कई बार उठाई थी लेकिन इस मांग के एवज में केवल जनता के निर्माणों को तोड़ने की कार्रवाई ने तो मांग उठाने वालों को ग्लानि से भर दिया है। प्रशासन की टीम में शामिल लोग भी भारी मन से ही सैंकड़ो लोगो के रोजगार को छीनने का काम करते हुए कार्रवाई कर रहें है।

चौकियां तोड़ना तो ठीक, आगे की दिक्कत किसको..?
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। कस्बे में हाइवे के बाद सर्विस रोड और सर्विस रोड के बाद भी करीब 20 फ़ीट से ज्यादा भूमि खाली पड़ी रहती है। इसके बाद होटलों की चौकियां और अन्य निर्माण है। ऐसे में चौकियां तोड़ने तक तो हर कोई संतोष कर रहा है कि होटल वालो की मनमानी भी ना चले। लेकिन छज्जे और चौकियां तोड़ने के बाद 75 फ़ीट दूरी पर स्थित लोगों की दुकानें, होटले तोड़ने पर हर कोई निराश नजर आ रहा है और सबका यही सवाल है कि दिक्कत किसको.? कार्रवाई से पीड़ित नांगरिको का सवाल है कि श्रीडूंगरगढ़ के समानांतर नोखा, बीकानेर शहर में हजारो निर्माण हाइवे की जद में है लेकिन उन्हें कोई छेड़ने वाला नहीं तो श्रीडूंगरगढ़ के पीछे ही क्यों पड़े है.?

कसूर किसका..?
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। कसूर किसका है.? जी हां आज यही बड़ा सवाल है गूंज रहा है कि आखिर कसूर किसका है। कई सालों से अपना परिवार पाल रहें आम लोग और एकाएक उन्हें हटाने वाले सरकारी कारिंदे आज 75 वर्ष बाद भी अंग्रेजी शासन की याद दिला रहें है। जिसमें सभी सरकारी या रसूखदार को बख्शा जा रहा है और आमजन के उजड़ने या बसने से कोई फर्क किसी को पड़ने वाला नहीं है। कार्रवाई को उचित बताने की वकालत करते भी कई नजर आ रहें है। यहां आमजन में विचार है कि इसमें कसूर किसका है.? जिन्हें नियमों या कानूनों से नहीं अपने परिवार को पालने की चिंता भर की जुगत में जुटे रहना है उन्हें हटाया जा रहा है। ये भूमि आज भी राजस्व रिकॉर्ड में हाइवे की ही जमीन है और तर्क ये है कि जमीन जिसकी है वो लेगा ही। सवाल वही है की कसूर किसका है.? क्या इन्हें पट्टा बनाकर देने वाले पालिकाध्यक्ष व अधिकारियों को जानकारी नहीं थी कि जमीन हाइवे की है। उन्होंने जब पट्टे बनाए तो किसी ने सवाल क्यों नहीं किया कि जब राजस्व रिकॉर्ड में पालिका की जमीन नहीं तो पालिका पट्टे क्यों बना रही है? आज उन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं.? कार्रवाई का शिकार केवल आमजन ही क्यों.? क्या उन तत्कालीन अफसरों और पालिकाध्यक्षो पर भी कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।

कब्जे हो तो सरकारी हो, जब ना दिखें तो कैसे हटे..?
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। श्रीडूंगरगढ़ में ही नहीं राज्य भर में नेताओं ने व्यवस्थाओं को लचर बना कर भ्रष्टाचार के शिखर तक पहुंचाया है। यहां कब्जे करने है और कार्रवाई से भी बचे रहना है तो विचार एक ही है कि सरकारी बनो! आमजन को आमजन बने रहने में ही कष्ट है। अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई में सरकारी दफ्तरो के भवन, चारदीवारी, सरकारी सुलभ शौचालय, नेताओ के आवास को तो छूट दी जा रही है। आमजन है तो अतिक्रमणकारी घोषित कर दिए जाएंगे और कार्रवाई भी की जाएगी।

दिलवावो मुआवजा?
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। पालिका द्वारा जारी पट्टों को भी अतिक्रमण मान कर हटवाने वाले अफसरों की राय है कि मुआवजा देना हो तो पालिका दे। अब पालिका और आमजन को इसके लिए कोर्ट में कई सालों मुकदमे लड़ने होंगे। आमजन कोर्ट कचहरी को आज भी हिकारत से देखता है और कोई ये जहमत नहीं करेगा। नुकसान झेल कर चुप बैठना नियति मान कर सहन कर जाएगा। कुछ लोगों का मत है कि सरकारी भूमि पर पट्टे जारी करने वाले पालिकाध्यक्षो व अफसरों से आमजन के नुकसान की राशि मुआवजे के रूप दिलवाई जानी चाहिए। इस विचार पर कार्रवाई में रोड़े होंगे क्योंकि सरकारी तो आखिर है सरकारी।

श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। सरकारी सुलभ काम्प्लेक्स सर्विस रोड के बीचोंबीच होकर भी नही है अतिक्रमण।
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। सरकारी सुलभ काम्प्लेक्स सर्विस रोड के बीचोंबीच होकर भी नही है अतिक्रमण।
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। विधानसभा के एक प्रश्न के उत्तर में प्रशासन ने खुद माना सरकारी कार्यालयों का कब्जा।
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। विधानसभा के एक प्रश्न के उत्तर में प्रशासन ने खुद माना सरकारी कार्यालयों का कब्जा।
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। विधानसभा के एक प्रश्न के उत्तर में प्रशासन ने खुद माना सरकारी कार्यालयों का कब्जा।
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। विधानसभा के एक प्रश्न के उत्तर में प्रशासन ने खुद माना सरकारी कार्यालयों का कब्जा।

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