श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 2 जून 2020। ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। यह व्रत सभी एकादशी में श्रेष्ठ माना गया है। जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु के निमित्त यह व्रत निर्जल रखा जाता है। महर्षि वेदव्यास ने भीम को इस व्रत का महत्व बताया था। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। यह व्रत हमें जल संरक्षण का संदेश देता है।
निर्जला व्रत रखने से कई जन्मों के पापों का नाश हो जाता है। इस दिन मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षियों को भी पानी पिलाना चाहिए। इस दिन माता-पिता और गुरु के चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इस व्रत के प्रभाव से स्वास्थ्य, समृद्धि, वैभव और शांति की प्राप्ति होती है। यह दिन आध्यात्मिक दृष्टि से किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। इस व्रत में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। व्रत न कर पाएं तो इस दिन सामर्थ्य के अनुसार दान अवश्य करें। इस दिन जल का दान करना श्रेष्ठ माना गया है। धार्मिक पुस्तकों का भी दान कर सकते हैं। इस व्रत में पीले वस्त्र धारण कर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। भगवान विष्णु का शृंगार पीले पुष्पों से करें। भगवान विष्णु को आम का नैवेद्य लगाया जाता है। व्रती पूरे दिन निराहार, निर्जल रहें। व्रत के अगले दिन पूजा कर पहले ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें, इसके बाद भोजन ग्रहण करें।
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