श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 1 जून 2020। बीड़ी-सिगरेट व अन्य तम्बाकू उत्पादों के सेवन से देश में हर वर्ष लगभग 12 लाख लोग यानि करीब तीन हजार लोग हर रोज दम तोड़ देते हैं। इन्हीं विस्फोटक स्थितियों को देखते हुए सार्वजनिक स्थलों और स्कूलों के आस-पास बीड़ी-सिगरेट व अन्य तम्बाकू उत्पादों की बिक्री पर रोक के लिए केंद्र सरकार सन 2003 में सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम (कोटपा) ले आई है, जिस पर सख्ती से अमल की जरूरत है।
बीड़ी-सिगरेट व अन्य तम्बाकू उत्पादों का सेवन करने वाले लोग न केवल अपने जीवन से खिलवाड़ करते हैं, बल्कि घर-परिवार की जमा पूंजी को भी इलाज पर फूंक देते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए हर साल 31 मई को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस मनाया जाता है, जिसके जरिए लोगों को तम्बाकू के खतरों के प्रति सचेत किया जाता है। इस बार कोरोना के संक्रमण को देखते हुए सोशल मीडिया, फेसबुक लाइव, रेडियो, वीडियो प्रसारण व विज्ञापनों के जरिए धूम्रपान के खतरों के बारे में लोगों को जागरूक किया जाएगा। इस बार युवाओं पर आधारित- प्रोटेक्टिंग यूथ फ्रॉम इंडस्ट्री मैनिपुलेशन एंड प्रिवेंटिंग देम फ्रॉम टोबैको एण्ड निकोटिन यूज की थीम रखी गई है।
युवा शुरू में महज दिखावा के चक्कर में सिगरेट व अन्य तम्बाकू उत्पादों की गिरफ्त में आता है जो उसे इस कदर जकड़ लेती है कि उससे छुटकारा पाना उसके लिए बड़ा कठिन हो जाता है। विज्ञापनों एवं फ़िल्मी दृश्यों को देखकर युवाओं को यह लगता है कि सिगरेट पीने से लड़कियां उनके प्रति आकर्षित होंगी या उनका स्टेटस प्रदर्शित होगा, उनकी यही गलत सोच उनको धूम्रपान के अंधेरे कुंए में धकेलती चली जाती है। उन्होंने कहा कि तम्बाकू का सेवन करने वालों को करीब 40 तरह के कैंसर और 25 अन्य गंभीर बीमारियों की चपेट में आने की पूरी सम्भावना रहती है। इसमें मुंह व गले का कैंसर प्रमुख हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर पड़ जाती है, जिससे संक्रामक बीमारियों की चपेट में भी आने की सम्भावना रहती है। यही नहीं धूम्रपान करने वालों के फेफड़ों तक करीब 30 प्रतिशत ही धुंआ पहुंचता है। बाहर निकलने वाला 70 प्रतिशत धुंआ धूम्रपान न करने वालों को प्रभावित करता है। यह धुंआ (सेकंड स्मोकिंग) सेहत के लिए और खतरनाक होता है।
धूम्रपान से आती है नपुंसकता
धूम्रपान कितना खतरनाक है, इसका अंदाजा लगा पाना बहुत कठिन है। धूम्रपान के चक्कर में युवा नपुंसकता का शिकार हो रहा है। धूम्रपान शुक्राणुओं की संख्या को नुकसान पहुंचाते हैं, जिसके चलते नपुंसकता का शिकार बनने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसी को ध्यान में रखते हुए इस साल की थीम भी युवाओं पर केन्द्रित है, जिससे उनको इस बुराई से बचाया जा सके।
क्या कहते हैं आंकड़े
उत्तर प्रदेश में तम्बाकू का सेवन करने वालों का आंकड़ा हर साल बढ़ रहा है। वर्ष 2009-10 में प्रदेश में करीब 33.9 फीसद लोग गुटखा व अन्य रूप से तम्बाकू का सेवन कर रहे थे, जो 2016-17 में बढ़कर 35.5 प्रतिशत पर पहुंच गया है। धूम्रपान करने वालों की तादाद में मामूली गिरावट जरूर देखने को मिली है। दस साल पहले जहां 14.9 प्रतिशत आबादी धूम्रपान करती थी, वह 2016-17 में 13.5 प्रतिशत पर आ गयी है। खैनी व धुंआ रहित अन्य तम्बाकू उत्पादों का सेवन करने वालों की तादाद 2009-10 में 25.3 प्रतिशत थी, वह 2016-17 में बढ़कर 29.4 प्रतिशत पर पहुंच गई है।