






श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 8 जून 2021। वृक्षासन
वृक्षासन दो शब्दों से मिलकर बना है ’वृक्ष’ का अर्थ पेड़ होता है और आसन योग मुद्रा की ओर दर्शाता है। इस आसन की अंतिम मुद्रा एकदम अटल होती है, जो वृक्ष की आकृति की लगती है, इसीलिए इसे यह नाम दिया गया है। यह बहुत हद तक ध्यानात्मक आसन है। यह आपके स्वास्थ के लिए अच्छा होने के साथ मानसिक संतुलन भी बनाये रखने में सहायक है।
विधि
1.आप सबसे पहले सीधे खड़े हों जाएं या ताड़ासन में आ जाएं।
2.पैरों के बीच की जगह को कम करें और हाथों को सीधा रखें।
3.दायां पैर उठाएं और दाएं हाथ से टखना पकड़ लें।
4.दाईं एड़ी को दोनों हाथों की सहायता से बाईं जांघ के ऊपरी भाग यानी जोड़ पर रखें।
5.पंजों की दिशा नीचे की ओर हो और दाएं पांव के तलवे से जांघ को दबाएं।
6.ध्यान रहे मुड़े हुए पांव को दूसरे पांव के साथ समकोण बनाए।
7.अब हथेलियों और अंगुलियों को प्रार्थना की मुद्रा में जोड़ें, ऊपर उठाएं और छाती पर रखें फिर धीरे-धीरे उन्हेंं उठाकर सिर से ऊपर ले जाएं।
8.आपके दोनों हाथ सिर से सटे होनी चाहिए।
9.कुछ समय तक शरीर का संतुलन बनाए रखें और इस अवस्था को अपने हिसाब से धारण किये हुए रहे।
10.अब हाथ नीचे ले जाएं और मूल अवस्थाे में लौट आएं।
11.फिर इसी प्रक्रिया को दूसरे तरफ से करें।
यह एक चक्र हुआ। इस तरह से आप 3 से 5 चक्र करें।
सावधानियां
1.वृक्षासन उनको नहीं करनी चाहिए जिनके घुटनों में बहुत जयादा दर्द है।
2.अधिक एड़ियों के दर्द होने पर इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
लाभ
1. इस आसन के नियमित अभ्यास से शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक संतुलन स्थापित होता है।
2. बॉडी शेप सही होता है।
3. एकाग्रता का विकास होता है।
4. कद भी बढ़ता है।
(इस संबंध में अन्य जानकारी के लिए संपर्क करें योग व मेडिटेशन स्पेशलिस्ट राजू हीरावत से 9414587266 व्हाट्सएप नम्बर पर)