आज का पंचांग, 17 अक्टूबर 2020 के शुभ अशुभ मुहूर्त, जाने करने योग्य धर्म-कर्म पंडित विष्णुदत्त शास्त्री से।

श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 17 अक्टूबर 2020।🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓

शास्त्रों के अनुसार तिथि के पठन और श्रवण से माँ लक्ष्मी की कृपा मिलती है ।
* वार के पठन और श्रवण से आयु में वृद्धि होती है।
* नक्षत्र के पठन और श्रवण से पापो का नाश होता है।
* योग के पठन और श्रवण से प्रियजनों का प्रेम मिलता है। उनसे वियोग नहीं होता है ।
* करण के पठन श्रवण से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है ।
इसलिए हर मनुष्य को जीवन में शुभ फलो की प्राप्ति के लिए नित्य पंचांग को देखना, पढ़ना चाहिए ।

🌻शनिवार,17 अक्टूबर 2020🌻

सूर्योदय: 🌄 06:42
सूर्यास्त: 🌅 18:01
चन्द्रोदय: 🌝 06:56
चन्द्रास्त: 🌜18:46
अयन 🌕 दक्षिणायने (दक्षिणगोलीय)
ऋतु: ❄️ शरद
शक सम्वत: 👉 1942
विक्रम सम्वत: 👉 2077
मास 👉 आश्विन
पक्ष 👉 शुक्ल
तिथि👉 प्रतिपदा 21:08 तक
नक्षत्र 👉 चित्रा 11:52 तक
योग 👉 विष्कुम्भ 21:25 तक
करण 👉 किस्तुघ्न 11:04 तक
बव 21:08 तक
अभिजित मुहूर्त 👉 12:00-12:46
राहुकाल 👉 09:32-10:57
दिशाशूल 👉 पूर्व
सूर्य 🌟 तुला
चंद्र 🌟 तुला
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☄चौघड़िया विचार☄
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॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ – काल =06:44-08:07
२ – शुभ =08:07-09:32
३ – रोग =09:32-10:57
४ – उद्वेग =10:57-12:22
५ – चर =12:22-01:47
६ – लाभ =01:47-03:12
७ – अमृत =03:12-04:37
८ – काल =04:37-06:01

॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ – लाभ =06:01-07:37
२ – उद्वेग =07:37-09:12
३ – शुभ =09:12-10:47
४ – अमृत =10:47-12:22
५ – चर =12:22-01:57
६ – रोग =01:57-03:22
७ – काल =03:22-05:08
८ – लाभ =05:08-06:43

नवरात्री के पहले दिन माँ शैलपुत्री की आराधना की जाती हैं। ये ही नवदुर्गाओं में माँ दुर्गा का पहला स्वरूप हैं । पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। मां शैलपूत्री सौभाग्‍य का प्रतीक मानी गयी हैं।
माँ शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। देवी का वाहन बैल है। मां शैलपुत्री के मस्तक पर अर्ध चंद्र विराजित है। माता शैलपुत्री मूलाधार चक्र की देवी मानी जाती हैं। अपने पूर्व जन्म में ये सती के रूप में प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं, उस जन्म में सती माता का विवाह भगवान शंकरजी से हुआ था।
पूर्वजन्म की भाँति इस जन्म में भी ‘शैलपुत्री’ देवी का विवाह भी शंकरजी से ही हुआ। अर्थात इस जन्म में भी वे शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मां शैलपुत्री चंद्रमा के दोष को दूर करती हैं। जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर है, उन्हें माता के शैलपुत्री स्वरूप की आराधना करनी चाहिए।
आज माता के दिव्य मन्त्र – ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:। की एक माला का जप अवश्य ही करना चाहिए ।
पहला नवरात्र के दिन मां शैलपुत्री को गाय के घी भोग लगाने चाहिए, इससे आरोग्य की प्राप्ति होती है ।