श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 16 सितबंर 2020। श्रीडूंगरगढ़ क्षेत्र के राजनैतिक, सामाजिक नेता, कार्यकर्ता की आंदोलन, विरोध, प्रदर्शन, धरना, घेराव, ज्ञापन आदि सब में अत्यधिक सक्रियता देखने को मिलती है लेकिन श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स का आज का मुद्दा यही है कि क्या क्षेत्र के सभी नेता, कार्यकर्ता, जनप्रतिनिधि, पदाधिकारी आदि केवल अपने-अपने मुद्दों को हवा देतें रहेगें या क्षेत्र के गरीब की आवाज भी सुनेगें। जी हां, आज हम बात कर रहे है क्षेत्र के सबसे गरीब वर्ग की एक ऐसी समस्या की, यह वर्ग जाति-धर्म, गांव-शहर, महिला-पुरूष आदि सब भेद से अलग केवल पेट की आग बुझाने के लिए तपती दोपहर में नरेगा कार्य पर जाने वाला श्रमिक वर्ग है। क्षेत्र में इन दिनों चल रही राजनैतिक वर्चस्व की जंग में अब क्षेत्र के अधिकारी भी शामिल हो गए है एवं इन बड़े लोगों की लडाई में क्षेत्र का गरीब नरेगा श्रमिक दो जून की रोटी को भी तरस रहा है।
इस शर्मनाक स्थिति का जिम्मेदार कौन..?
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। सरकारें भले ही नरेगा के माध्यम से प्रत्येक परिवार को साल में 100 दिन का रोजगार देकर पेट भरने लायक काम देने का वायदा कर रही है लेकिन श्रीडूंगरगढ़ में ये वायदे हवा-हवाई ही नजर आ रहे है। यहां काम देना तो दूर पिछले एक माह से अधिक समय से तो नरेगा श्रमिकों को किए गए काम का पैसा भी नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में क्षेत्र के सैंकडों गरीब परिवार जो अपने द्वारा किए गए काम का पैसा सरकार से लेने व अपने घर में दवाई, अनाज आदि की व्यवस्था करने का इंतजार कर रहे है। अपने घर के बच्चों को भूख से बिलखते और बुजुर्गों को दवाई के लिए तड़पते देख कर ये नरेगा श्रमिक खून के आंसू रोने को मजबूर है और यह शर्मनाक स्थिति पैदा हुई है क्षेत्र में अधिकारियों की हठधर्मिता के कारण। श्रीडूंगरगढ़ पंचायत समिति में अधिकारियों की गुटबाजी से एक माह से अधिक समय से नरेगा श्रमिकों का भुगतान रूका हुआ है। ये विवाद विकास अधिकारी मनोज कुमार धायल एवं सहायक अभियंता महेश कुमार वर्मा के बीच में चल रहा है और दोनो अधिकारी स्वयं को नियमों में सही साबित करने की होड़ में जुटे हुए है। ऐसे में चाहे दोष किसी का भी निकले सवाल यह उठता है कि इन श्रमिकों को होने वाली दिक्कतों की भरपाई कौन करेगा..?
आधे से भी कम हो गए नरेगा श्रमिक, क्यों रूका है भुगतान.?
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। श्रीडूंगरगढ़ पंचायत समिति में 53 ग्राम पंचायतों के माध्यम से गरीब परिवारों को आवश्यकतानुसार नरेगा के माध्यम से रोजगार दिया जाता है। लॉकडाउन के दौरान आई मंदी के समय तक क्षेत्र में नरेगा श्रमिकों की संख्या 25 हजार से अधिक हो गई थी एवं गत 10 अगस्त तक यह संख्या 17 हजार से अधिक थी। लेकिन 11 अगस्त के बाद से भुगतान रूका हुआ है और किए गए कार्य का भी पैसा नहीं मिलने से निराश श्रमिकों ने नरेगा जाना ही कम कर दिया और आज दिनांक में नरेगा श्रमिकों की संख्या 8 हजार ही बची है। 11 अगस्त के बाद के भुगतान वाउचरों पर श्रीडूंगरगढ़ विकास अधिकारी मनोज कुमार धायल ने एईएन के हस्ताक्षर होने का नियम बताते हुए पंचायत समिति एएईएन महेश कुमार वर्मा को भुगतान वैरीफाई करने को कहा गया है। वहीं दूसरी और एईएन महेश कुमार वर्मा ने जिले की समस्त पंचायत समितियों में जेटीओ (जूनियर टैक्निकल ऑफिसर) द्वारा वैरीफाई करने के बाद ही भुगतान होने की परम्परा का हवाला देते हुए वेरीफाई करने से मना कर दिया गया। यहां से शुरू हुआ विवाद पहले जिला परिषद, जिला कलेक्टर से होते हुए अभी जयपुर तक गलियारों में लोकायुक्त तक पहुंच चुका है। लेकिन सवाल तो एक ही निकल कर आ रहा है कि अधिकारी भले ही कोई गलत हो, श्रमिकों का भुगतान क्यों रूका हुआ है..?
एक दिन की वेतन कटौती पर आंदोलन करने वाले अधिकारी कब समझेंगें जनता का दर्द।
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। सरकार द्वारा राज्य कार्मिकों का एक दिन का वेतन कटौती के आदेशों के बाद इन दिनों हर रोज सभी कार्मिक इन आदेशों की होली जला रहे है एवं जनप्रतिनिधि भी इन कार्मिकों के सर्मथन में सरकार के विरोध में उतर आए है। लेकिन विडम्बना ही है कि खुद के एक, दो दिनों का वेतन कटने के खिलाफ आंदोलन में उतर चुके कर्मचारी-अधिकारी क्या इन गरीबों की तकलीफ नहीं समझ पा रहे है और क्या हमारे क्षेत्र के जनप्रतिनिधि केवल अपने राजनैतिक वर्चस्व को कायम करने के लिए गरीबों की पीड़ा को अनदेखा करते हुए अपने अपने पक्ष के अधिकारियों को सर्मथन ही करते रहेगें…? ऐसों अनेकों सवाल श्रीडूंगरगढ़ की जनता क्षेत्र के अधिकारियों, कर्मचारियों एवं जनप्रतिनिधियों से पुछ रही है। नरेगा भुगतान रोकने का यह मामला पूरे जिले ही नहीं शायद पूरे राज्य में या यों कहें पूरे देश में अनुठा सा बन गया है जहां हर कोई नियमों की बात करते हुए नरेगा के सबसे बड़े नियम टी+8 को ही तोड़ रहे है। इस खता के लिए इन सभी को सामूहिक जिम्मेदार मानते हुए सभी के खिलाफ कार्यवाही भी सरकार कर सकती है।
एक नियम की पालना में मुख्य नियम की उडाई धज्जियां, दोषियों पर हो सकती है कार्यवाही।
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। आइए जानते है कि यह टी+8 नियम है क्या? टी+8 नियम जो राज्य सरकार ने नरेगा भुगतान निश्चित समय में करने के लिए 14 मार्च 2019 को लागू किया था। जिसमें श्रमिकों के कार्य का एक पखवाडा पूरा होने के आठ दिनों के भीतर-भीतर अनिवार्य रूप से भुगतान देना होता है और यह भुगतान किसी भी सूरत में रोका नहीं जाएगा। इन 8 दिनों में पहले दिन मस्टरोल ग्राम रोजगार सहायक के पास जांच के लिए एवं दूसरे दिन ग्राम रोजगार सहायक को इसे आगे पहुंचाना होता है। पांचवें दिन तक इसे जेटीए या जेईएन को आगे पास करना होता है एवं सातवें दिन तक पंचायत समिति लेखा कार्मिक द्वारा पारीत करना होता है। आठवें दिन विकास अधिकारी सभी श्रमिकों को ऑनलाईन भुगतान कर देते है। सरकार ने भले ही इन आठ दिनों में एक-एक दिन की जिम्मेदारी एक-एक अधिकारी को स्पष्ट कर दी है लेकिन श्रीडूंगरगढ़ पंचायत समिति क्षेत्र में लगता है कि सरकार के सभी दावे, नियम, कायदे, कानून कोई मायने नहीं रखते, यहां मायने रखती है तो केवल राजनैतिक वर्चस्व की जंग एवं अधिकारियों द्वारा खुद को सही साबित करने की होड़, देखना यह है कि कौन इन गरीबों की सुनवाई अब कौन करता है, इसी विषय पर कुछ और विशिष्ट जानकारियों लेकर हम फिर हाजीर होगें, श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स के प्राईम मुद्दे में। सादर नमस्कार।
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