श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 26 दिसम्बर 2019। श्रीडूंगरगढ़ कस्बे में हर रोज पालिका एवं आम जन के बीच में ठन रही है, कभी सडकों के निर्माण में रही खामियों को लेकर रास्ता जाम करते रानी बाजार के व्यापारी तो कभी सफाई की मांग को लेकर बाजार बंद करते मुख्य बाजार के व्यापारी। कभी किसी मोहल्ले में गंदे पानी निकासी की मांग को लेकर प्रदर्शन तो भी तो नए कार्यों में लापरवाही के कारण पेयजल बंद होने से मोहल्लेवासियों में आक्रोश। कुछ ऐसी ही बानगी रोजाना श्रीडूंगरगढ़ कस्बे में नजर आ रही है। यहां हर रोज कहीं ना कहीं कोई प्रदर्शन हो रहा है। लेकिन कस्बे सहित पूरे क्षेत्र में आज यही नागरिकों की हथाई में सुनने को मिले। आज कस्बेवासियों का एक ही सवाल गूंजता सुनाई दिया कि ऐसे हालात बने ही क्यों..? कस्बे सहित गावं गुवाड़ की हथाई में यही विषय छाया रहा है कि आखिर श्रीडूंगरगढ़ किस और जा रहा है क्यों यहां के नागरिकों को हर रोज प्रदर्शनों से जूझना पड़ रहा है।
एक समस्या का समाधान करने के प्रयास मे दूसरी समस्या खड़ी कर देना कहां तक सही है..? दशहरा मैदान से स्वर्णकार मंदिर तक डाले जा रहे दो फीट के ड्रेनेज नालों को भूमिगत करने के कार्य के दौरान पाईपलाईनें तोड़ देना कहां तक सही है…? नई सडक बनाने के दौरान पुरानी सडक से जोड़ कर स्लैब बनाने के बजाए आधे फीट से लेकर एक फीट तक ऊंची खड़ी ठोकर छोड़ देना कहां तक सही है..? पुरानी सड़क के ऊपर ही नई सडक बना कर पहले से ही ऊंचे धोरों की सडकों को और ऊंचा कर देना कहां तक सही है..? नई सडकों के निर्माण के दौरान सड़कों के साईड में चार चार फिट की जगह ब्लाक फुटपाथ के लिए छोड़ कर भूल जाना एवं सडकों को वाहन चालकों के लिए दुर्घटनाओं का स्थान बना देना कहां तक सही है..? नई बनी सडक को पेयजल सप्लाई लाईन डालने के लिए खोद देना और पुन: सही करने के बजाए उखडी हुई ईंटे ही छोड देना कहां तक सही है..? ऐसे अनेकों सवाल आज कस्बे का हर नागरिक प्रशासन से पूछ रहा है। कस्बे में पालिका सहित अन्य विभागों द्वारा करवाए जा रहे कार्यों में ठेकेदारों द्वारा छोटी छोटी लापरवाहियों के कारण आम जनता लंबे समय तक समस्याओं का सामना करती है। इन सभी समस्याओं का समाधान भी काफी छोटा ही होता है लेकिन अधिकारियों की उदासीनता एवं ठेकेदारों की अकर्मण्यता के कारण कस्बे का आम नागरिक आज कस्बे के हर विकास कार्य के दौरान परेशान होने को मजबूर है। नई सडक बनाने के दौरान साईडों मे नाली साथ में बन जाए, ब्लाक साथ में ही लग जाए, पुरानी सडकों से जोड पर ठोकरें बना कर छोड देने के बजाए स्लैब बना दिया जाए, ड्रेनेज पाईप डालने के दौरान मुख्य सप्लाई लाईनों की जगहों पर अतिरिक्त चैम्बर बना दिया जाए, नई सडक पर से तुरंत मिट्टी हटा दी जाए, जहां नई सडकें बन रही हो वहां पर पहले से ही पेयजल सप्लाई लाईनें डाल दी जाए सहित ऐसे अनेकों छोटे छोटे कार्य है जो भले ही अधिक खर्चीले नहीं हो लेकिन उदासीन प्रशासन के कारण इन्हीं कार्यों को करवाने में कस्बेवासियों की पूरी ऊर्जा खर्च हो रही है।
विकास कार्यों के दौरान कस्बेवासियों को हो रही दिक्कतों के समाधान के लिए आवश्यकता है कि संबधित कार्यों की सही मोनिटरिंग की। यह मोनिटरिंग या तो जनप्रतिनिधि करें या फिर उपखण्ड स्तरीय प्रशासन। लेकिन श्रीडूंगरगढ़ में दोनो ही ऐसा करने में असक्षम रहे है एवं इस कारण संबधित विभागों में आपसी समन्वय कभी बन ही नहीं पा रहा एवं सभी विभाग एक दूसरे के कार्यों को बिगाड़ रहा है। ये विभागीय अधिकारी भले ही अपने अपने विभाग का कार्य कर रहे हो लेकिन आम जनता को इससे परेशान होना पड़ रहा है। विभागीय अधिकारी यह क्यों नहीं सोचते कि उनका लक्ष्य केवल अपने विभाग का कार्य करना नहीं बल्कि जनता को राहत देना होना चाहिए। इससे संसाधनों का दुरुपयोग भी होता है और सरकारी धन का दुरुपयोग भी होता है। आम जन भी इस संबध में उदासीन है एवं समस्या खड़ी होने के बाद विरोध प्रदर्शन की राह को चुन रहा है। आवश्यकता है कि प्रशासन, जनप्रतिनिधि नहीं जागे तो जनता ही जाग जाए। अपने अपने मोहल्लों में होने वाले कार्यों को स्वंय खडे रह कर मोहल्लों की जागरूकता समिति बना कर निगरानी करें एवं छोटी छोटी समस्याओं से स्वंय ही बचे। श्रीडूंगरगढ़ में तो यह समस्याएं कुछ ऐसी बन चुकी है कि इनसे बचाव ही उपचार है।
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