May 20, 2024

श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 30 मार्च 2024। शनिवार स्पेशल में हम बात करेंगे हमारे क्षेत्र के किसानों और खेतों की, श्रीडूंगरगढ़ क्षेत्र मूंगफली उत्पादन के लिए सुप्रसिद्ध है। आज इस विशेष कॉलम में चर्चा होगी मूंगफली बिजाई के बारे में- मूंगफली बिजाई का समय आ गया है और किसान रबी की फसल निकाल लेने के बाद अपने खेत तैयार कर रहें है। सहायक कृषि अधिकारी हितेश जांगिड़ ने श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स को जानकारी देते हुए बताया कि क्षेत्र में मूंगफली किसानों की मुख्य फसल है। अनेक बार कुछ कारणों से किसानों को खराबे के कारण नुकसान अधिक हो जाता है जिससे लागत भी वसूल नहीं हो पाती है। ऐसे में किसान अच्छे उत्पादन के लिए विभागीय अधिकारियों के निर्देशन में बिजाई व अन्य कार्य करें तो उत्पादन में लाभ हो सकेगा। किसान बिजाई के पूर्व दो जरूरी बातें ध्यान रखें पहली जमीन में किसी भी प्रकार के कीड़े हो जैसे गोजा लट के अंडे, प्यूपा, लार्वा व वयस्क के रूप में जो जमीन में करीब 10 से 15 सेंटीमीटर तक रहते हैं। ऐसी स्थिति में किसान बुआई से पहले खेत की गहरी जुताई कर उसे 7 से 10 दिन तक छोड़ दें। जिस से सूर्य की गर्मी और मित्र किट उन्हे नष्ट कर देंगे जिससे फसल को नुकसान की आशंका कम हो सकें। दूसरी क्षेत्र की मिट्टी जहां मिट्टी का PH 6 से ऊपर हो वहां पर 200 से 250 किलो जिप्सम बुआई से पहले खेत में डालना अच्छे उत्पादन में सहायक होगी।
बुआई के समय- मूंगफली दलहन परिवार की तिलहनी फसल होने के कारण सामान्य रूप से नाइट्रोजनधारी उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है। फिर भी हल्की मिट्टी में मूंगफली की शुरुआती बढ़वार के लिए 15 से 20 किलोग्राम नाइट्रोजन तथा 50-60 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हैक्टर के हिसाब से खेत की तैयारी के समय ही भूमि में मिला देना चाहिए।
बीज उपचार है जरूरी- मूंगफली की बुआई के समय बीज उपचार बहुत आवश्यक हैं। क्योंकि काली जड़ रोग और अन्य मिट्टी से होने वाली बीमारियों से बचने के लिए अति आवश्यक हैं। किसान 2-3 ग्राम मेन्कोजेब+कार्बेण्डिजिम प्रति किलो बीज व इमिडाक्लोरोपिड 17.3%SL की 250 से 300 Ml प्रति क्विंटल बीज को उपचारित करें।
बीज क़िस्म व बीज दर- राजस्थान कृषि विभाग ने क्षेत्र के लिए मूंगफली की कुछ किस्मों को बेहतर बताया है परंतु क्षेत्र में सामान्यत: किसानों का भरोसा 10नंबर, 20 नंबर, और 510 नंबर बीज पर है। ये बीज 40 से 46 किलो प्रति बीघा प्रयोग लिया जाता है। कृषि विभाग के सहायक निदेशक सुरेंद्र कुमार मारू ने टाइम्स से बातचीत में बताया कि मुंगफली उत्पाद में IPM ( इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट) और EPN (एंटोपेथोजेनिक निमेटोड) का प्रयोग करना बहुत अधिक फायदेमंद रहा है। इससे मुख्यत: अच्छा उत्पादन किसानों ने पाया है। मारू ने बताया कि बुआई के बाद पहली सिंचाई के साथ EPN देना चाहिए जिस से जब जड़ो में गांठे बनती हैं। तो ये निमेटोड उन गांठो में प्रवेश कर लेते है। गोजा लट के लार्वा सबसे पहले इन जड़ की गांठो को खाना ही पसन्द करते हैं। जिस से ये निमेटोड लार्वा के पेट में पहुंच कर उनको पर पैरालाईसिस (लकवा) कर देते हैं। जिस से गोजा के लार्वा वहीं नष्ट हो जाते है और वे फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाते। मारू ने बताया कि क्षेत्र में वर्ष 2023 में मूंगफली की फसल में गोजा लट के प्रकोप से भारी नुकसान हुआ। इस बार किसान बुआई से पहले अपने खेत में सीसम (टाली), मीठा बबूल, बेर के पेड़ो की कटाई छंटाई जरूर करें। गोजा लट वयस्क होने के बाद भूमि से निकल कर इन्हीं पेड़ों की पत्तियों पर बैठती है। जब इन पेड़ों पर पत्तियां ही नहीं होगी तो वे स्वयं ही नष्ट हो जाएगी।
जड़ गलन रोग का उपचार- मूंगफली में जड़ गलन रोग एक प्रमुख रोग हैं। यह बीज व मृदाजनित फफूंद (एसपर्जिलस नाइजर) से होने वाला सबसे घातक रोग है। इस रोग का प्रकोप गर्म व शुष्क मौसम तथा रेतीली या दोमट मिट्टी वाले क्षेत्रों में ही बहुतायत होता है। इस रोग के कारण भूमि की सतह के पास तने व जड़ पर गहरे भूरे से काले रंग के धब्बे बने जाते हैं। जड़ गलन से मूंगफली को बचाने के लिए ट्राइकोडर्मा 10 किलो प्रति बीघा के हिसाब से डालना भी फायदेमंद रहेगा। राजस्थान में मूंगफली की बिजाई सर्वाधिक बीकानेर जिले में होती है जिसमें भी श्रीडूंगरगढ़ का अपना महत्व हैं। बता देवें श्रीडूंगरगढ़ क्षेत्र में करीब 3,04000 बीघा मूंगफली की बिजाई होती है। जिसमें लगभग 2,43,200 टन मूंगफली उत्पादन होता हैं। जिससे क्षेत्र में करोड़ो की उपज के साथ समृद्धि आती है। किसान अपनी उपज के लिए कड़ी मेहनत के साथ तकनीकी प्रयोग भी शामिल करें जिससे वे उचित उत्पादन ले सकें।

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