श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 21 अक्टूबर 2020। 🗓आज का पञ्चाङ्ग🗓
शास्त्रों के अनुसार तिथि के पठन और श्रवण से माँ लक्ष्मी की कृपा मिलती है ।
* वार के पठन और श्रवण से आयु में वृद्धि होती है।
* नक्षत्र के पठन और श्रवण से पापो का नाश होता है।
* योग के पठन और श्रवण से प्रियजनों का प्रेम मिलता है। उनसे वियोग नहीं होता है ।
* करण के पठन श्रवण से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है ।
इसलिए हर मनुष्य को जीवन में शुभ फलो की प्राप्ति के लिए नित्य पंचांग को देखना, पढ़ना चाहिए ।
🌻बुधवार, 21 अक्टूबर 2020 🌻
सूर्योदय: 🌄 06:45
सूर्यास्त: 🌅 17:58
चन्द्रोदय: 🌝 11:30
चन्द्रास्त: 🌜22:03
अयन 🌕 दक्षिणायने (उत्तरगोलीय)
ऋतु: ❄️ शरद
शक सम्वत: 👉 1942
विक्रम सम्वत: 👉 2077
मास 👉 आश्विन
पक्ष 👉 शुक्ल
तिथि: 👉 पञ्चमी (09:07 तक)
नक्षत्र: 👉 मूल (25:13 तक)
योग: 👉 शोभन (06:50 तक)
क्षय योग: 👉 अतिगण्ड (28:25 तक)
प्रथम करण: 👉 बालव (09:07 तक)
द्वितीय करण: 👉 कौलव (20:17 तक)
अभिजित मुहूर्त 👉❌❌❌❌
राहुकाल 👉 12:21-13:45
दिशाशूल 👉 उत्तर
चंद्रवास 👉 पूर्व
चन्द्र राशि 👉 धनु
सूर्य राशि 👉 तुला
〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰️〰️
☄चौघड़िया विचार☄
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
॥ दिन का चौघड़िया ॥
१ – लाभ =06:45-08:09
२ – अमृत =08:09-09:33
३ – काल =09:33-10:57
४ – शुभ =10:57-12:21
५ – रोग =12:21-01:45
६ – उद्वेग =01:45-03:09
७ – चर =03:09-04:33
८ – लाभ =04:33-05:58
॥रात्रि का चौघड़िया॥
१ – उद्वेग =05:58-07:34
२ – शुभ =07:34-09:09
३ – अमृत =09:09-10:45
४ – चर =10:45-12:21
५ – रोग =12:21-01:57
६ – काल =01:57-03:33
७ – लाभ =03:33-05:09
८ – उद्वेग =05:09-06:45
● पंचमं स्कंदमाता ●
देवताओं के सेनापति कहे जाने वाले स्कन्द कुमार, यानि कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है।
स्कंदमाता का स्वरूप
भगवान स्कंद के बालरूप को माता अपनी दाई तरफ की ऊपर वाली भुजा से गोद में बैठाये हुए है। स्कंदमाता स्वरुपिणी देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा से भगवान स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में और नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है, उसमें कमल-पुष्प लिए हुए हैं।
मां के पंचम स्वरूप स्कंदमाता माता को केले का प्रसाद चढ़ाने से उत्तम स्वास्थ्य व निरोगी काया की प्राप्ति होती है।
“सिंहासनगता नित्यं पद्याञ्चितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥”
(पंडित विष्णुदत्त शास्त्री)