श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 23 जनवरी 2020। कई लोगों में शांत वातावरण में बैठे होने और किसी तरह का बाहरी शोर नहीं होने पर भी कानों में आवाज गूंजने की समस्या होती है। कानों में सीटी बजने जैसी आवाज आना एक बीमारी है। कुछ लोग इसे बोलचाल की भाषा में कान बजना भी कहते हैं।
यह आम समस्या नहीं है, बल्कि टिनिटस नाम की बीमारी है। इस बीमारी में कानों के अंदर बिना किसी कारण आवाज सुनाई देती है। हालांकि यह समस्या स्थाई नहीं होती, लेकिन सही उपचार न किए जाने पर लंबे समय तक और लगातार परेशानी का कारण बन सकती है।
यह समस्या कभी भी पैदा हो सकती है और खास बात यह है कि कई बार अपने आप ही ठीक हो जाती है, लेकिन कुछ गंभीर मामलों में यह सुनने की क्षमता पर असर डालती है।
अगर कोई व्यक्ति टिनिटस यानी कान बजने का शिकार हो गया है तो उन्हें उन लक्षणों को पहचानना होगा, क्योंकि कई बार लोग इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं जिससे बीमारी लंबे समय चलती है।
इस बीमारी का सामान्य लक्षण है कि कान में तेजी से घंटियां बजती हैं और तेज सिरदर्द होता है। इसके अलावा कान में झनझनाहट होती है। कान बजने की तीव्रता घटती-बढ़ती रहती है।
टिनिटस के सामान्य कारणों में कान में मैल हो जाना, कान में पस पड़ना, गंभीर चोट या संक्रमण के कारण कान के पर्दे में छेद होना या फिर लगातार तेज आवाज सुनने के कारण कान में क्षति हुई हो।
एक अन्य कारण में बढ़ती उम्र के कारण सुनने की क्षमता पर असर है। वैसे सर्दी के मौसम में फ्लू या इन्फेक्शन के कारण नाक बंद हो जाती है, इससे कान पर दबाव पड़ता है और यह भी कान बजने का एक कारण है।
कान बजने के कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं, जिनमें हाई बीपी, कम या अधिक सक्रिय थायराइड ग्रंथि, डायबिटीज, एनीमिया, अपने आसपास कोई बड़ा विस्फोट या गोलियों की जोर से आवाज सुनना जैसे कारण शामिल हैं।
डॉ. अभिषेक गुप्ता का कहना है कि कुछ महत्वपूर्ण सवालों के आधार पर इसके गंभीर कारणों का पता लगाया जा सकता है जैसे, सुनाई देने वाली आवाज लगातार आ रही है या रुक रुककर, सुनाई दे रहा है या नहीं, चक्कर तो नहीं आ रहे, कान के पास दर्द और जबड़े के चटखने की आवाज या कान के पास कभी चोट लगी हो।
इस दौरान कुछ टेस्ट किए जाते हैं जिसमें कान, सिर, गर्दन या धड़ का संपूर्ण परीक्षण, सुनने की क्षमता की जांच, ब्लड टेस्ट, कान में ट्यूमर या अन्य स्थिति की जांच के लिए सीटी स्कैन और एमआरआई स्कैन कराना शामिल है।
बीमारी की गंभीरता के आधार पर इसका उपचार है। समस्या हल्की या पिछले कुछ समय से ही हो तो अपने आप ठीक हो जाती है। इस बीमारी के रोगियों को साउंड थेरेपी दी जाती है। कुछ विशेष मामलों में ही सर्जिकल उपचार दिया जाता है। नसों से जुड़ी समस्याएं या कान में ट्यूमर की स्थिति में ही यह उपचार दिया जाता है।
इस बीमारी के शिकार होने का जोखिम कुछ परिस्थितियों में तब बढ़ जाता है जब जहां आप काम करते हैं वहां लगातार शोर हो। हेडफोन का अधिक इस्तेमाल, अत्यधिक धूम्रपान भी जोखिम के कारक होते हैं। इससे बचाव के लिए तेज आवाज के संपर्क में आने से बचें। कान में लगाकर इस्तेमाल करने वाले उपकरणों की आवाज धीमी रखें।