श्रीडूंगरगढ में मंदिर के पास टावर के निर्माण का मौहल्ले वासियों ने विरोध कर काम रूकवाया

श्रीडूंगरगढ टाइम्स 4 जून 2020। कस्बे के आड़सर बास में चिड़पड़नाथ की बगीची के पास निजी फोन कंपनी टावर लगाने का कार्य करने मौहल्ले में आई इस पर मौहल्ले वासियों ने सामूहिक रूप से जमकर विरोध प्रकट किया किया और टावर का काम रूकवाया। हालांकि कंपनी नगरपालिका के अधिकारी से अनुमति लेकर कार्य करने आई परन्तु कस्बे का पुराना व प्रसिद्ध शिव मंदिर यहीं होने पर नागरिकों ने विरोध जताया। पार्षद रामकिशन थेपड़ा ने बताया कि यहां शिवरात्रि को तथा पूरे साल सभी त्यौहारों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है व अन्य साधु संत भी यहां आते रहते है टावर लगने से यहां रेडिएशन के खतरे के साथ गली भी संकड़ी हो जाएगी जिससे आवागमन में भी समस्या उत्पन्न हो जाएगी। मौहल्लेवासियों ने आज विरोध कर काम रूकवाया और आगे की कार्यवाही भी करने को तैयार है। ये टावर मंदिर की जद में व पेड़ीवालों के घर के ठीक सामने लगाया जाना है जिससे घर के अंदर रहने वालों का कहना है कि विशेषज्ञ दावा करते हैं कि अगर घर के समाने टावर लगा है तो उसमें रहने वाले लोगों को 2-3 साल के अंदर सेहत से जुड़ी समस्याएं शुरू हो सकती हैं। मौहल्ले वासियों का कहना है कि यहां टावर लगाया गया तो वे कोर्ट की शरण में भी जाएंगे।

खतरनाक है रेडिएशन –
श्रीडूंगरगढ टाइम्स। मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन पर दुनिया भर में बहस चल रही हैं। लगातार शोध किए जा रहे हैं। रेडिएशन से होने वाले नुकसान को देखते हुए मोबाइल टावर्स को हटाने की मांग तेज हो गई है। हाल ही में ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ने अपने शोधों का विश्लेषण किया। जिसमें पाया गया कि सरकार की तरफ से कराए गए शोध और अध्ययनों में मोबाइल रेडिएशन से ब्रेन ट्यूमर होने की आशंका ज्यादा है। साथ ही 24 घंटे रेडिएशन के साए में रहने वाले लोगों को कैंसर होने की आशंका चार गुना बढ़ जाती है। 2004 में इजराइली शोधकर्ताओं एक शोध किया। जिसके बाद उन्होंने बताया कि जो लोग लंबे समय से स्थापित मोबाइल टावर के 350 मीटर के दायरे में रहते हैं उन्हें ये गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते है। जानकारों का कहना है कि मोबइल से अधिक परेशानी उसके टॉवर्स से है। क्योंकि मोबाइल का इस्तेमाल हम लगातार नहीं करते, लेकिन टावर लगातार चौबीसों घंटे रेडिएशन फैलाते हैं। मोबाइल पर अगर हम घंटे भर बात करते हैं तो उससे हुए नुकसान की भरपाई के लिए हमें 23 घंटे मिल जाते हैं, जबकि टावर के पास रहने वाले उससे लगातार निकलने वाली तरंगों की जद में रहते हैं।
देश की सबसे बड़ी अदालत का ऐतिहासिक फैसला
श्रीडूंगरगढ टाइम्स। वर्ष 2017 में ऐसा पहली बार हुआ था जब एक व्यक्ति की शिकायत पर हानिकारक रेडिएशन को आधार बना कर कोई मोबाइल टावर बंद किया गया हो। कैंसर पीड़ित की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 7 दिनों के भीतर एक मोबाइल टावर को बंद करने का आदेश दिया था। बता दें कि ग्वालियर के हरीश चंद तिवारी ऐसे पहले शख्स बने जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट को इस बात के लिए मना लिया था कि मोबाइल फोन टावर के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन से उन्हें कैंसर हुआ। दूरसंचार मंत्रालय ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर बताया था कि इस समय देश में 12 लाख से अधिक मोबाइल फोन टावर हैं और लगातार इनकी संख्या बढ रही है। जिनमें से मात्र 212 टावरों में रेडिएशन तय सीमा से अधिक पाया गया. जिसके बाद कोर्ट ने सभी टावरों पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए थे कि मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर को पूरे तरीके से नियमों का पालन कराने के लिए समय सीमा निर्धारित की जाए। उल्लेखनीय है कि गत वर्ष दूरसंचार विभाग ने ‘तरंग संचार’ पोर्टल लॉन्च किया। जिसके माध्यम से आप पता लगा सकते हैं कि आप के इलाके में कितना रेडिएशन फैला हुआ है।

श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। निजी कंपनी का सामान ही नहीं उतरने दिया मौहल्ले वासियों ने।
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। पार्षद रामकिशन थेपड़ा ने जमकर विरोध किया टॉवर का।