श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 12 अप्रैल 2021। 🚩श्री गणेशाय नम:🚩
शास्त्रों के अनुसार तिथि के पठन और श्रवण से माँ लक्ष्मी की कृपा मिलती है ।
वार के पठन और श्रवण से आयु में वृद्धि होती है।
नक्षत्र के पठन और श्रवण से पापो का नाश होता है।
योग के पठन और श्रवण से प्रियजनों का प्रेम मिलता है। उनसे वियोग नहीं होता है ।
*करण के पठन श्रवण से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है ।
इसलिए हर मनुष्य को जीवन में शुभ फलो की प्राप्ति के लिए नित्य पंचांग को देखना, पढ़ना चाहिए ।
📜 आज का पंचांग 📜
☀ 13 – Apr – 2021
☀ Sri Dungargarh, India
☀ पंचांग
🔅 तिथि प्रतिपदा 10:18:32
🔅 नक्षत्र अश्विनी 14:19:44
🔅 करण :
बव 10:18:32
बालव 23:32:32
🔅 पक्ष शुक्ल
🔅 योग विश्कुम्भ 15:14:53
🔅 वार मंगलवार
☀ सूर्य व चन्द्र से संबंधित गणनाएँ
🔅 सूर्योदय 06:11:46
🔅 चन्द्रोदय 06:58:00
🔅 चन्द्र राशि मेष
🔅 चन्द्र वास पूर्व
🔅 सूर्यास्त 18:57:57
🔅 चन्द्रास्त 20:07:00
🔅 ऋतु वसंत
☀ हिन्दू मास एवं वर्ष
🔅 शक सम्वत 1943 प्लव
🔅 कलि सम्वत 5122
🔅 दिन काल 12:46:11
🔅 विक्रम सम्वत 2078
🔅 मास अमांत चैत्र
🔅 मास पूर्णिमांत चैत्र
☀ शुभ और अशुभ समय
☀ शुभ समय
🔅 अभिजित 12:09:19 – 13:00:23
☀ अशुभ समय
🔅 दुष्टमुहूर्त 08:45:00 – 09:36:04
🔅 कंटक 07:02:50 – 07:53:55
🔅 यमघण्ट 10:27:09 – 11:18:14
🔅 राहु काल 15:46:24 – 17:22:10
🔅 कुलिक 13:51:28 – 14:42:33
🔅 कालवेला या अर्द्धयाम 08:45:00 – 09:36:04
🔅 यमगण्ड 09:23:18 – 10:59:05
🔅 गुलिक काल 12:34:51 – 14:10:37
☀ दिशा शूल
🔅 दिशा शूल उत्तर
☀ चन्द्रबल और ताराबल
☀ ताराबल
🔅 अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, मृगशिरा, पुनर्वसु, आश्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, रेवती
☀ चन्द्रबल
🔅 मेष, मिथुन, कर्क, तुला, वृश्चिक, कुम्भ
🔅 पंचक – बुधवार, 7 अप्रैल (03:00 PM) से
सोमवार, 12 अप्रैल (11:29 AM) तक
📜 चोघडिया 📜
🔅रोग 06:11:46 – 07:47:32
🔅उद्वेग 07:47:32 – 09:23:18
🔅चल 09:23:18 – 10:59:05
🔅लाभ 10:59:05 – 12:34:51
🔅अमृत 12:34:51 – 14:10:37
🔅काल 14:10:37 – 15:46:24
🔅शुभ 15:46:24 – 17:22:10
🔅रोग 17:22:10 – 18:57:57
🔅काल 18:57:57 – 20:22:02
🔅लाभ 20:22:02 – 21:46:08
🔅उद्वेग 21:46:08 – 23:10:14
🔅शुभ 23:10:14 – 24:34:20
🔅अमृत 24:34:20 – 25:58:25
🔅चल 25:58:25 – 27:22:31
🔅रोग 27:22:31 – 28:46:37
🔅काल 28:46:37 – 30:10:42
❄️लग्न तालिका ❄️
🔅 मीन द्विस्वाभाव
शुरू: 04:50 AM समाप्त: 06:15 AM
🔅 मेष चर
शुरू: 06:15 AM समाप्त: 07:52 AM
🔅 वृषभ स्थिर
शुरू: 07:52 AM समाप्त: 09:48 AM
🔅 मिथुन द्विस्वाभाव
शुरू: 09:48 AM समाप्त: 12:03 PM
🔅 कर्क चर
शुरू: 12:03 PM समाप्त: 02:23 PM
🔅 सिंह स्थिर
शुरू: 02:23 PM समाप्त: 04:40 PM
🔅 कन्या द्विस्वाभाव
शुरू: 04:40 PM समाप्त: 06:56 PM
🔅 तुला चर
शुरू: 06:56 PM समाप्त: 09:16 PM
🔅 वृश्चिक स्थिर
शुरू: 09:16 PM समाप्त: 11:35 PM
🔅 धनु द्विस्वाभाव
शुरू: 11:35 PM समाप्त: अगले दिन 01:39 AM
🔅 मकर चर
शुरू: अगले दिन 01:39 AM समाप्त: अगले दिन 03:22 AM
🔅 कुम्भ स्थिर
शुरू: अगले दिन 03:22 AM समाप्त: अगले दिन 04:50 AM
सोमवती अमावस्या 12 अप्रैल विशेष
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सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है। सोमवार चंद्र देवता कों समर्पित दिन है,भगवन चंद्र को मन का कारक माना जाता है अतः इस दिन अमावस्या पड़ने का अर्थ है की यह दिन मन सम्बन्धित दोषो को दूर करने के लिए उत्तम है। हमारे शास्त्रो में चंद्रमा को ही दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टो का कारक माना जाता है,अतः यह पूरे वर्ष में एक या दो बार ही पड़ने वाले पर्व का बहुत अधिक महत्त्व माना जाता है। विवाहित स्त्रियों के द्वारा इस दिन पतियों की दीर्घ आयु के लिये व्रत का विधान है।
सोमवती अमावस्या कलयुग के कल्याणकारी पर्वो में से एक है, लेकिन सोमवती अमावस्या को अन्य अमावस्याओं से अधिक पुण्य कारक मानने के पीछे भी पौराणिक एवं शास्त्रीय कारण है। सोमवार को भगवान शिव एवं चंद्र का दिन माना जाता है। सोम यानि चन्द्रमा अमावस्या और पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा यानि सोमांश या अमृतांश सीधे-सीधे पृथ्वी पर पड़ता है।
शास्त्रो के अनुसार सोमवती अमावस्या के दिन चन्द्रमा का अमृतांश पृथ्वी पर सबसे अधिक पड़ता है।
अमावस्या अमा और वस्या दो शब्दों से मिलकर बना है। शिव पुराण में इस संधि विच्छेद को भगवान् शिव ने माँ पार्वती को समझाया था।क्योंकि सोम को अमृत भी कहा जाता है अमा का अर्थ है एकत्रित करना और वास को वस्या कहा गया है। यानि जिसमे सभी वास करते हो वह अति पवित्र अमावस्या कहलाती है यह भी कहा जाता है की सोमवती अमावस्या में भक्तो को अमृत की प्राप्ति होती है।
निर्णय सिंधु व्यास के वचनानुसार इस दिन मौन रहकर स्नान-ध्यान करने से सहस्त्र गौ दान का पूण्य मिलता है।
शास्त्रो के अनुसार पीपल की परिक्रमा करने से ,सेवा पूजा करने से, पीपल की छाया से,स्पर्श करने से समस्त पापो का नाश,अक्षय लक्ष्मी की प्राप्ति होती है व आयु में वृद्धि होती है।
पीपल के पूजन में दूध, दही, मिठाई,फल, फूल,जनेऊ, का जोड़ा चढाने से और घी का दीप दिखाने से भक्तो की सभी मनोकामनाये पूरी होती है। कहते है की पीपल के मूल में भगवान् विष्णु तने में शिव जी तथा अग्र भाग में ब्रह्मा जी का निवास है। इसलिए सोमवार को यदि अमावस्या हो तो पीपल के पूजन से अक्षय पूण्य लाभ तथा सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
इस दिन विवाहित स्त्रियों द्वारा पीपल के पेड़ की दूध, जल, पुष्प, अक्षत, चन्दन आदि से पूजा और पीपल के चारो और 108 बार धागा लपेट कर परिक्रमा करने का विधान होता है और हर परिक्रमा में कोई भी मिठाई या फल चढाने से विशेष लाभ होता है। ये सभी 108 फल या मिठाई परिक्रमा के बाद ब्राह्मण या निर्धन को दान करे।इस प्रक्रिया को कम से कम 3 सोमवती तक करने से सभी समस्याओ से मुक्ति मिलती है।इस प्रदक्षिणा से पितृ दोष का भी निश्चित समाधान होता है।
इस दिन जो भी स्त्री तुलसी या माँ पार्वती पर सिंदूर चढ़ा कर अपनी मांग में लगाती है वह अखंड सौभाग्यवती बनी रहती है।
जिन जातको की जन्म पत्रिका में कालसर्प दोष है। वे लोग यदि सोमवती अमावस्या पर चांदी के बने नाग-नागिन की विधिवत पूजा कर उन्हें नदी में प्रवाहित करे, शिव जी पर कच्चा दूध चढाये, पीपल पर मीठा जल चढ़ा कर उसकी परिक्रमा करें, धुप दीप दिखाए, ब्राह्मणों को यथा शक्ति दान दक्षिणा दे कर उनका आशीर्वाद ग्रहण करे तो निश्चित ही काल सर्प दोष की शांति होती है।
इस दिन जो लोग व्यवसाय में परेशानी उठा रहे है, वे पीपल के नीचे तिल के तेल का दिया जलाकर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मन्त्र का कम से कम 5 माला जप करे तो व्यवसाय में आ रही दिक्कते समाप्त होती है। इस दिन अपने पितरों के नाम से पीपल का वृक्ष लगाने से जातक को सुख, सौभाग्य, पुत्र की प्राप्ति होती है, एव पारिवारिक कलेश दूर होते है।
पं. विष्णुदत्त शास्त्री (8290814026)