


श्रीडूंगरगढ टाइम्स 27 जून 2019। जैन श्वेताम्बर समाज में आज ज्ञानचंद सेठिया ने संथारा प्रथा से देह त्याग की। पूरे समाज ने उनके समान्न में भव्य अंतिम शोभा यात्रा निकाली। ज्ञानचंद की अंतिम यात्रा उनके निवास स्थान आड़सर बास से शहर के मुख्य मार्गों से श्मशान भूमि तक गाजे बाजे से निकाली गयी। सेठिया की स्मृति में मालू भवन में सभा का आयोजन किया गया। साध्वी पावन प्रभा ने इस अवसर पर कहा कि सेठिया में सहनशीलता व समता बेजोड़ थी। उन्होने अपने प्रण को अन्तिम समय तक पूरी दृढता के साथ निभाया व श्रावक के तीसरे मनोरथ के संकल्रप को पूरा किया। साध्वी श्रीरिजु प्रभा, कृष्णयशा, सम्पतप्रभा, मुक्तिश्री, धर्मयशा, विकास सेठिया, प्रशान्त जैन, विकास छाजेड़, महिला मण्डल संरक्षिका झिणकार देवी बोथरा, उपाध्यक्ष मधु झाबक, तेरापंथी सभा के मिडिया संयोजक तुलसीराम चौरड़िया, तेरापंथी सभा मंत्री तेजकरण डागा, धनराज पुगलिया ने भी विचार व्यक्त किये व ज्ञानचंद सेठिया के परिवार को इस उपलब्धि पर बधाई व सांत्वना दी।
ये है संथारा का महत्व – संथारा संतोष और धर्म के साथ इस पथ पर जाता है। व्यक्ति मृत्यु को सामने देखकर भी वह डरता नहीं है। संथारा वह व्यक्ति लेता है जो सोचता है मेरे और परमात्मा के बीच में अब किसी को नहीं आना है, क्योंकि अब मेरी यात्रा पूर्ण हो रही है। जैन धर्म में इसे संन्यास मरण और वीर मरण कहते है। जैन लोगों में इसे आत्मशुद्धि का मार्ग मानते है।
आचार्यश्री महाश्रमण ने ज्ञानचंद सेठिया के संथारा से देह त्याग को समाधि मरण वरण बताते हुए परिवार को धैर्य व मनोबल बनाए रखने व शोक नहीं करने की प्रेरणा दी।
