श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 22 मार्च 2021। आजकल मानव सभ्यता का विकास बिजली पानी इंटरनेट से ही आंका जाता है और श्रीडूंगरगढ़ में पिछले वर्षों में बढ़ती समृद्धि में यहां के भूगर्भीय जल की ही देन है। बरसात की न्यूनता के बावजूद क्षेत्र का विकास इस पानी के बदोलत हो रहा है जो क्षेत्रवासियों के लिए ईश्वरीय वरदान ही है। ईश्वर ने भूगर्भिक जल की दौलत से हमें समृद्ध तो किया है परन्तु हम इसके दोहन में लापरवाह हो रहें है जिसका परिणाम आने वाले समय में नोनिहालों को भुगतना होगा और तब शायद वे अपने बुजुर्गों को कोसे की गैर जिम्मेदाराना ढंग से हमने उनके लिए पानी नहीं बचाया। बता देवें
पिछले सालों में लगातार बढ़ रहें कृषि कुएं व इनसे बेहिसाब निकाला जा रहा पानी अब चितांजनक स्तर पर पहुंच गया है। भूजल विभाग के एईएन पन्नाराम ने श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स से बातचीत में चिंता जताते हुए कहा कि श्रीडूंगरगढ़ अतिदोहित क्षेत्र में शामिल हो गया है और यहां जलजागरूकता बहुत जरूरी हो गई है अन्यथा आने वाले समय में ये ट्यूबवैल सुख जाएंगे तो किसान के साथ साथ विकास व सभी नागरिकों की आर्थिक स्थिति बुरी तरह से प्रभावित हो जाएगी। (बता देवें अतिदोहित का अर्थ डार्क जोन है सरकार ने शब्दावली बदलते हुए इसे अतिदोहित कर दिया है।) पन्नाराम ने कहा कि क्षेत्र में जल के उपयोग कर्ता अपना नजरीया बदलें व जल बचत प्रारंभ करें। उन्होंने कहा कि किसान फसलों का पैटर्न बदल सकते है जिससे पानी बचाया जा सकें। बता देवें कृषि वैज्ञानिकों के नए सुझावों को मान कर किसान कम पानी मे होने वाली फसलें लेवे, 60 दिन व 90 दिन में पकने वाली फसलें लेंवे, कारखाने यहां बहुतायत नहीं है परन्तु जो है वे जल संरक्षण पर ध्यान देवें जिससे कल के लिए जल बचाया जा सकें व आर्थिक नुकसान भी ना हो। बता देवें हमारा क्षेत्र कृषि प्रधान है और भविष्य में कृषि को बचाने के लिए आज ही तैयारी करनी आवश्यक हो गई है अन्यथा झुंझुनू के खेतड़ी इलाके जैसे हालात होते देर नहीं लगेगी। वहां आज पीने को पानी नहीं और अब नागरिक बरसात के पानी का संरक्षण करने को मजबूर है। पन्नाराम ने बताया कि श्रीडूंगरगढ़ में सबसे ऊँचा भूजल स्तर लालासर क्षेत्र में 54.34 मीटर है तथा सबसे नीचे गोपालसर 129.38 मीटर पर है।
धोरों को काटने में व्यर्थ बहता हजारों गैलन पानी।
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। रेतीले धोरों वाली धरती में किसान धोरों को काट कर खेत को समतल करने के प्रयासों में जुटें है। धोरे को काटने के लिए लाखों लीटर पानी बहाया जाता है जो गिरते जलस्तर में एक खतरनाक तरीका है और भूजल का दुरूपयोग है। जानकारों का कहना है कि ट्यूबवेल सुखने के बाद पछताने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं होगा। श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स भी क्षेत्रवासियों से निवेदन करता है कि पानी व्यर्थ नहीं बहाएं अन्यथा आने वाले समय में हमारे क्षेत्र के लिए जल संकट खड़ा होते देर नहीं लगेगी। किसान ड्रिप सिंचाई, फव्वारा सिंचाई अपनाएं व पानी बचाने पर ध्यान देवें।
बरसात का पानी बचाने के उपाय प्रारंभ करें।
श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स। कृषि वैज्ञानिकों व भूजल विभाग के अधिकारियों ने बताया कि बरसात के जल का संरक्षण करना बहुत आवश्यक है। घरों की छतों से बरसाती जल एकत्र किया जाए। खेतों में भी बरसात के पानी का कुंड बना कर उसका पायतान बनाया जाएं जिससे वर्ष भर पीने का मीठा पानी उपलब्ध हो सकें। बता देवें बीकानेर जिले में वार्षिक औसत बरसात 250-300 एम एम होती है जिसे बचाने पर ध्यान केन्द्रित किया जा सकता है। दुर्भाग्य ही है कि अभी तक आम नागरिक तक जलचेतना नहीं पहुंच सकी है परन्तु आने वाले गंभीर समय के लिए अब जल जागरूकता अपनाने की आवश्यकता है।