श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 17 जून 2021। जानुशीर्षासन का नाम दो शब्दों के मेल से बना है: जानु, और शीर्ष। जानु मतलब घुटना, और शीर्ष मतलब सिर। इस आसन से आपका स्वास्थ्य अच्छा रहता है और तनाव से भी मुक्त रहते हैं।
विधि
1.दंडासन में बैठ जायें। हल्का सा हाथों से ज़मीन को दबाते हुए और साँस अंदर लेते हुए रीढ़ की हड्डी को सीधा करने की कोशिश करें।
2.श्वास अंदर लें और अपनी दाईं टाँग को उठा कर दायें पैर को बाईं जाँघ के अंदरूनी हिस्से पर टिका लें।
इस मुद्रा में आपके दायें कूल्हे और घुटने पर खींचाव आएगा। और आपका दाया घुटना ज़मीन पर टिका होना चाहिए।
3.साँस छोड़ते हुए कूल्हे के जोड़ों से झुकें — ध्यान रहे कि कमर के जोड़ों से नहीं झुकना है। नीचे झुकते समय साँस छोड़ें।
4.दोनो हाथों से बायें पैर को पकड़ लें।
5.कुल मिला कर पाँच बार साँस अंदर लें और बाहर छोड़ें ताकि आप आसन में 30 से 60 सेकेंड तक रह सकें। धीरे धीरे जैसे आपके शरीर में ताक़त और लचीलापन बढ़ने लगे, आप समय बढ़ा सकते हैं — 90 सेकेंड से ज़्यादा ना करें।
6.पाँच बार साँस लेने के बाद आप इस मुद्रा से बाहर आ सकते हैं। आसन से बाहर निकलने के लिए साँस अंदर लेते हुए धड़ को ऊपर उठायें। ध्यान रहे कि आप अपनी पीठ को सीधा ही रखें और अपने कूल्हे के जोड़ों से ही वापिस ऊपर आयें।
7.जब पूरी तरह सीधे बैठ जायें। दाईं टाँग को आगे कर लें, और दंडासन में समाप्त करें।
8.दाहिनी ओर करने के बाद यह सारे स्टेप बाईं ओर से भी करें।
सावधानियां
1.जिन्हे पीठ के निचले हिस्से में दर्द की परेशानी हो, वह जानुशीर्षासन ना करें।
2.जिनके घुटनों में दर्द हो, उन्हे भी जानुशीर्षासन नहीं करना चाहिए।
3.यदि आपको दस्त या दमे की परेशानी हो तो जानुशीर्षासन ना करें।
4.अपनी शारीरिक क्षमता से अधिक जोर न लगायें।
लाभ
1.दिमाग़ को शांत करता है और हल्के अवसाद से छुटकारा पाने में मदद करता है।
2.रीढ़ की हड्डी, कूल्हों और घुटनों के लचीलेपन को बढ़ाता है।
3 जिगर और गुर्दे को उत्तेजित करता है।
4.पाचन में सुधार लाता है।
5.चिंता, थकान, सिरदर्द, और मासिक धर्म की परेशानी से छुटकारा दिलाता है।
6.हाई बीपी, अनिद्रा, और साइनस के लिए चिकित्सीय है।


