May 13, 2024

श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 6 जून 2021।पश्चिमोत्तानासन को शरीर में प्राण को संतुलित करने के लिए भी जाना जाता है। पश्चिमोत्तानासन संस्कृत के मूल शब्द से बना है। “पश्चिम” जिसका अर्थ है “पीछे” या “पश्चिम दिशा”, “उटाना” जिसका अर्थ है “तीव्र खिंचाव” और आसन जिसका अर्थ है “बैठने का तरीका”।
विधि
1.सबसे पहले दोनों पैरों को बाहर की ओर फैलाते हुए जमीन पर बैठ जाएं।
2.पैर की उंगलियां आगे और एक साथ रहनी चाहिए।
3.श्वास लें, अपनी बाहों को ऊपर उठाएं और जहां तक संभव हो शरीर को आगे की ओर झुकाने के लिए झुकें।
4.आगे की ओर झुकते समय साँस छोड़े ।
5.अंतिम चरण में, दोनों हाथों द्वारा पैरों के तलवे या अंगुलियां और नाक से घुटनों को छूना चाहिए।
प्रारंभ में, इसे 20 सेकंड के लिए करें और धीरे-धीरे जब तक आप सहज महसूस करते हैं, तब तक मुद्रा में बने रहने की कोशिश करें।
श्वास लें और मूल स्थिति में आएं।
यह आप 5 बार करें।

पश्चिमोत्तानासन के लाभ
1.यह आसन मन को शांत करता है और तनाव से भी छुटकारा दिलाता है ।
2.इसे करने से कंधे, रीढ़ को अच्छा खिंचाव मिलता है ।
3.इस आसन का नियमित रूप से अभ्यास करने से पाचन में सुधार होता है ।
4.इस आसन से उच्च रक्तचाप, अनिद्रा, बांझपन और साइनसाइटिस को ठीक किया जा सकता है ।
5.भूख बढ़ाने और मोटापा कम ( विशेष कर पेट की चर्बी) करने के लिए फ़ायदेमद है ।

सावधानियां
1.अस्थमा या दस्त होने पर इस आसन से बचें ।
2.यदि आपको पीठ में चोट लगी है, तो आपको एक प्रमाणित योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में ही इस आसन का अभ्यास करना चाहिए ।
3.गर्भवती महिलाएं इसे न करें।
(इस संबंध में अन्य जानकारी के लिए संपर्क करें योग व मेडिटेशन स्पेशलिस्ट राजू हीरावत से 9414587266 व्हाट्सएप नम्बर पर)

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