May 7, 2024

श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 5 अक्टूबर 2021। लखीमपुर खीरी में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री और उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री का विरोध करने जुटे किसानों और उस आयोजन में आये लोगों को जरा भी अंदेशा नहीं था कि आज का दिन भारत की राजनीति में उबाल ला देगा। जीप से कुचलने के कारण चार किसानों, एक पत्रकार सहित आठ लोगों की जान चली गई। एक साल से आंदोलन कर रहे किसानों को गुस्सा आना जायज था, आया भी और किसानों को यूपी के इस जिले में पहुंचने का फरमान किसान नेताओं ने जारी कर दिया। जो साधन मिला उसी से किसान चल पड़े लखीमपुर खीरी की तरफ।
यूपी सरकार को अहसास हो गया कि सब कुछ अनकंट्रोल हो जायेगा। थोड़े समय बाद ही चुनाव है, इसलिए ज्यादा चिंतित होना स्वाभाविक था। पुलिस का जाल बिछा दिया गया। केंद्र सरकार भी हरकत में आई। यूपी सीएम से मन्त्रणा हुई। भीतर ही भीतर कुछ रणनीति भी बनी।
दूसरी तरफ सड़को पर गुस्सा था। किसान तो गुस्से और रोष में था मगर सभी विपक्षी दल भी ताल ठोककर किसानों के पक्ष में आ गये। कांग्रेस से प्रियंका गांधी, बसपा से सतीश मिश्रा, आप से संजय सिंह, भीम आर्मी से चंद्रशेखर, सपा से खुद अखिलेश यादव, शिवपाल यादव सहित सभी विपक्षी नेता केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारों के खिलाफ मुखर हो गये।
प्रशासन ने इन में से किसी नेता को मृत किसानों के शवों के पास जाने नहीं दिया। घेरा बनाकर रोक दिया। पुलिस और इन नेताओं में तीखी तकरार हुई। नेताओं को रोकने के लिए कानूनी प्रक्रिया बहुत देरी से अपनायी गई जिससे देश में तनाव हुआ। इन पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने अलग अलग शहरों में भाजपा के खिलाफ प्रदर्शन किये। यूपी में सीएम के पुतले जलाये गये। यूपी में हालात तनाव पूर्ण थे।
इस तनाव के मध्य किसान नेता राकेश टिकेत को लखीमपुर खीरी जाने से नहीं रोका गया। यूपी सरकार और सीएम योगी जानते थे कि टिकेत को रोका गया तो किसान उग्र होंगे और समझौता तभी सम्भव है जब टिकेत को न रोका जाये। पूरे मामले में यूपी प्रशासन का यही निर्णय समझदारी का था। टिकेत के अलावा भीम आर्मी के चंद्रशेखर गुपचुप तरीके से बाइक लेकर घटना स्थल तक पहुंच गये। बाकी सब विपक्षी नेताओं को वहां जाने से रोकने में यूपी प्रशासन सफल रहा। भले ही उसके इस काम की पूरे देश में आलोचना हुई।
छत्तीसगढ़ के सीएम, पंजाब के डिप्टी सीएम को भी वहां जाने से रोका गया।
पहले तो भाजपा को समझ ही नहीं आया कि क्या करे, फिर संभले और बयान शुरू हुए। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री खुद सामने आये और अपने बेटे को निर्दोष बताया। मगर सोशल मीडिया पर भाजपा की बातों को झूठ साबित करने के बयान घटना के वीडियो के साथ वाइरल होने लगे। अब तो जुबानी राजनीतिक जंग शुरू हो गई जिसने हदें पार की।
दूसरी तरफ टिकेत और प्रशासन के मध्य वार्ता शुरू हुई। मृत किसानों को बड़े मुआवजे, सरकारी नोकरी, घायलों को सहायता सहित केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री के पुत्र के विरुद्ध एफआईआर, रिटायर्ड जज से जांच सहित मांगे मानी गई और तनाव को हल्का करने का काम हुआ।
मगर अब भी विपक्षी दल इस मुद्दे को गरमाये हुए हैं। देश भर में प्रदर्शन हो रहे हैं। यूपी में सपा आंदोलन कर रही है। अन्य विपक्षी दल भी अपने स्तर पर इस घटना के दोषियों की गिरफ्तारी और केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री के त्यागपत्र की मांग कर रहे हैं।
लखीमपुर खीरी की घटना की आंच अभी बुझती नजर नहीं आती। किसान तो इससे ज्यादा मुखर हो अपने आंदोलन को जायज बता रहे हैं वहीं विपक्षी दल यूपी विधान सभा के चुनाव देख इस मुद्दे को जिंदा रख रहे हैं। भाजपा इस मामले में बचाव की मुद्रा में है।
मगर ये तय है कि यूपी में विपक्ष को बैठे बिठाये एक बड़ा मुद्दा मिल गया है। ये मुद्दा आने वाले चुनाव की गणित बिगाड़ेगा, ये अब साफ दिखने लग गया है। किसान आंदोलन से पहले ही 80 विधान सभा सीट पर भाजपा के लिए परेशानी थी, अब ज्यादा परेशानी हो गई। यूपी चुनाव पर इस घटना का असर पड़ेगा। भाजपा के थिंक टैंक रास्ता तलाशने में लगे हैं तो विपक्ष ने भी अपनी तरकश में तीर भर रखे हैं। लखीमपुर खीरी की ये घटना बड़े राजनीतिक उलटफेर भी कर सकती है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार

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