बिहार की राजधानी पटना में 23 जून को विपक्षी एकता के लिए गैर भाजपा दलों की बैठक हो रही है जिसमें अगले आम चुनाव में विपक्षी मत न बंटने देने पर बात होगी। नीतीश कुमार व तेजस्वी यादव की पहल पर हो रही इस बैठक में कांग्रेस सहित सभी प्रमुख दल भाग लेंगे। पहले ये बैठक 12 जून को होनी थी मगर कांग्रेस के ना करने पर उसे स्थगित कर दिया गया। उस समय कांग्रेस विरोधी दलों द्वारा कहा गया कि कांग्रेस ने एकता के प्रयास को नामंजूर कर दिया, जबकि नीतीश ने कहा कि बैठक स्थगित की गई है।
अब 23 जून की तारीख तय की गई है। इस बैठक में कांग्रेस से राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे व राहुल गांधी के शामिल होने की बात कही गई है। बैठक में भागीदारी के लिए टीएमसी की ममता दीदी, सपा के अखिलेश यादव भी शामिल होंगे, जिन्होंने पहले गैर कांग्रेसी विपक्ष का राग अलापा था। मगर अब दोनों ने ही पटना बैठक में भाग लेने की सहमति दे दी है। इस बात से ये साबित होता है कि नीतीश के एकता के प्रयास विफल नहीं हुए हैं।
इस बैठक में इस बात पर चर्चा होगी कि जिन राज्यों में जो क्षेत्रीय दल मजबूत है उसे सीट वितरण में प्रमुखता मिले। उसके फार्मूले पर चर्चा मुख्य रूप से होगी। कांग्रेस को इसके लिए कई राज्यों में कुछ सीट छोड़नी पड़ेगी। ये ही बात कई विपक्षी दल पहले से ही कह रहे हैं। जैसे सपा यूपी में लोकसभा की अधिक सीट चाहती है क्योंकि लोकसभा के लिए उसका अन्य राज्यों में कोई आधार नहीं है। ठीक इसी तरह टीएमसी बंगाल में अधिक सीट चाहती है।
अगर 23 जून की बैठक सफल होती है तो अनेक राज्यों की राजनीति में भी बड़ा फेरबदल होगा। नये गठजोड़ बनेंगे, जिससे बीजेपी की मुश्किलें बढ़ेगी। यूपी में सपा व कांग्रेस के साथ आने से लोकसभा चुनाव का समीकरण भी बदलेगा। ठीक इसी तरह महाराष्ट्र में भी महाअगाडी गठबंधन भाजपा को कड़ी टक्कर देगी। हिमाचल व कर्नाटक हारने के बाद विपक्षी दलों को इस बात का कुछ भरोसा हुआ है कि बीजेपी को आम चुनाव में टक्कर दी जा सकती है। वोट बंटने से रोकना जरूरी है। अगले आम चुनाव के नजरिये से 23 जून की बैठक बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस बैठक में यदि ठोस सहमति बनी तो भाजपा के लिए विपक्षी दल कड़ी चुनोती खड़ी करेंगे। इस बैठक पर भाजपा की भी नजरें गड़ी हुई है, क्योंकि बैठक के निर्णयों के अनुसार ही उसे अपनी आम चुनाव की रणनीति बनानी पड़ेगी।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार