








श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 26 मार्च 2025। आगामी 29 मार्च को बड़ा खगोलीय बदलाव होगा। शनि देव अपनी चाल बदल कर 29 मार्च की रात 09:41 पर मीन राशि में प्रवेश करेंगे। विक्रम् संवत् 2082 में शनिदेव मुख्यतः पूर्वाभाद्रपद एवं उत्तराभाद्रपद नक्षत्र तथा मीनराशि में ही गोचर करेंगे। इस अवधि में 28 अप्रैल 2025 को प्रातः 06:17 पर उत्तराभाद्रपद में प्रवेश करेंगे, 13 जुलाई 2025 को प्रातः 09:37 पर वक्री होंगे, 03 अक्टूबर 2025 को मध्यरात्रि 11:46 पर पूर्वाभाद्रपद में प्रवेश, 28 नवम्बर 2025 को प्रातः 09:20 पर मार्गी होंगे एवं 20 जनवरी 2026 को प्रातः 10:46 पर उत्तराभाद्रपद में प्रवेश करेंगे।
शनि व मंगल जब किसी राशि में गोचरवश वक्री होकर संचार करते हैं तो और भी अधिक क्रूर और अशुभ फलदायक हो जाते हैं। जबकि गुरु-शुक्र आदि शुभ ग्रह अपनी राशि में वक्री होने पर और भी अधिक शुभफल देते हैं:- यदा क्रूर ग्रहो वक्री अतिचारी तु सौम्यकः। पीड़ा व्याधि भयं तत्र दुर्भिक्षम् राज्यविग्रहम् ।।
शनिदेव वक्रावस्था में गोचर करेंगे तो जातक को मानसिक-शारीरिक-आर्थिक कष्ट, – रोगों का प्रकोप देंगे। राजनैतिक द्वन्द, अव्यवस्था, मंहगाई, छत्रभंग, गम्भीर रोगों से जनता त्रस्त होगी। भय, उपद्रव, हिंसा, बाढ़, दुर्भिक्ष व भूकम्प आदि प्राकृतिक प्रकोपों से जनता को कष्ट होगा।
शनि की साढ़ेसाती :- जब शनि किसी जातक की जन्म अथवा नाम की राशि से 12-1-2 स्थान में हो तो, उसे ‘साढ़ेसाती’ कहते है। शनि जिस राशि में संचरण करता है, उसम पहले (प्रथम), बाहरवें और दूसरे (द्वितीय) भावों में स्थित राशियों को विशेषतः प्रभावित करता है। इसी को शनि की साढ़ेसाती कहते है। मीन राशिगत संचार में कुम्भ-मीन-मेष राशि वा जातकों को शनि की साढ़ेसाती के मिश्रित फल प्राप्त होंगे।
संवत् 2082 में शनि की साढ़ेसाती का फल :-
1. कुम्भ-मीन-मेष राशि को साढ़ेसाती का अशुभ प्रभाव आगामी वर्ष रहेगा, जिसके फलस्वरूप शारीरिक-मानसिक कष्ट, क्लेश, अनियमित धन का व्यय, रोग-शत्रु से कष्ट, परिवार में तनाव से मन अशान्त होगा। कुम्भ राशि के लिए साढ़ेसाती पाँव पर उतरती हुई (अंतिम चरण) होगी। मीन राशि के लिए हृदय पर चढ़ती (मध्य अवस्था) हुई होगी। मेषराशि के लिए सिर पर कि चढ़ती हुई (प्रारम्भिक अवस्था) होगी।
नोट :- अन्य मत से मेषराशि के लिए मध्य के ढाई वर्ष, कुम्भ राशि के लिए प्रारम्भ एवं अन्त के पाँच वर्ष (विशेषतः अन्त के ढाई वर्ष) अधिक अशुभ होते है। मीनराशि के लिए साढ़ेसाती सम्पूर्ण कष्टकारी (अन्त के ढाई वर्ष विशेष कष्टदायी) होती है।
2. कुम्भ राशि पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव 29 मार्च 2025 से लगभग 02 वर्ष 02 मास 06 दिन तक रहेगा।
3. मीन राशि पर साढ़ेसाती का प्रभाव लगभग 04 वर्ष 04 मास 11 दिन तक रहेगा।
4. मेष राशि पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव 07 वर्ष 02 मास 03 दिन तक रहेगा।
संवत् 2082 में शनि की लघु कल्याणी ढैय्या का फल : मीन राशि के गोचर के प्रभाव से सिंह-धनु राशि को ढैय्या का फल प्राप्त होगा।
ढैया:- गोचरवश शनि जब जन्मराशि या नामराशि से 4-8 वें स्थान पर संचरण करता है, तब शनि की ढैया हाती है। यह लगभग 02 वर्ष 06 महीने रहती है। यह अशुभ फल प्रदान करती है। शनि की ढैया में जातक को व्यर्थ की दौड़धूप, अनावश्यक व्यय, गुप्त चिन्ता, रोग, शोक, कलह-क्लेश, धनहानि, बन्धु-विरोध, बाधा एवं उलझनों में ही समय व्यतीत होता है। कर्क-वृश्चिक राशि वालों के लिए शनि की ढैया का अशुभ प्रभाव जारी रहेगा।,
शनि पाया (पाद) विचार :- शनि के राशि प्रवेश के समय जन्म अथवा नाम राशि से चन्द्रमा की स्थित के अनुसार पाया का विचार किया जाता है। यथा :-
1. स्वर्णपाद (चन्द्रमा 1-6-11वें भाव में हो) :- वृष-तुला मीन
इसमें जातक को संघर्ष मिलता है। परिवार व व्यवसाय में क्लेश से मन व्यथित रहता है। शत्रु, रोगभय, धन के अपव्यय से मानसिक तनाव अधिक होता है।
2. रजतपाद (चन्द्रमा 2-5-9वें भाव में हो) :- कर्क-वृश्चिक-कुम्भ
प्रयासों का परिणाम बहुत ही धीमी गति से मिलता है। आकस्मिक धनलाभ, उच्च प्रतिष्ठा, व्यापार-नौकरी में उन्नति, स्त्री-सन्तान-भूमि-वाहन से सुख प्राप्त होता है।
3. ताँबे का पाया (चन्द्रमा 3-7-10वें भाव में हो) :- मिथुन-कन्या-मकर
व्यापार-नौकरी में उन्नति होती है। प्रभावशाली लोगों से सम्पर्क बढ़ता है। विद्या के अनुकूल कार्य से मन प्रसन्न होता है। परिवार एवं भौतिक सुखों में वृद्धि होती है। यात्राओं से मन प्रसन्न होता है।
4. लोहे का पाया (चन्द्रमा 4-8-12वें भाव में हो) :- मेष-सिंह-धनु
पारिवारिक एवं आर्थिक परेशानियाँ मन को व्यथित करेंगी। स्वास्थ्य की नींव कमजोर होगी तथा तनाव एवं उलझनें बढ़ेंगी। दुर्घटना से चोट लगने का भय, व्यापार में व्यवधान, परिश्रम के बाद भी असफलता तथा धन के अपव्यय से मन उदास रहेगा। जैसे:- लोहे में धन का नाश और सोने में समस्त कष्ट होता है। ताँबे को सम समझना चाहिए और चाँदी में सौभाग्य ढूँढ़ना चाहिए।
शनि संचार का फल :- गोचर में शनि जन्मराशि से पहले स्थान में हो तो मानसिक व्यथा एवं स्थान हानि, दूसरे में कलह, तीसरे में पराक्रम एवं सुख की वृद्धि, चतुर्थ में शत्रुवृद्धि, पंचम में संतान संबंधी दुःख, षष्ठ में सुख-साधनों में वृद्धि, सप्तम में रोग व शत्रु का भय, अष्टम दुख व पीड़ा, नवम में सुख, दशम में धनहानि व व्यय, एकादश में धनलाभ तथा 12वें भाव में नाना प्रकार के कष्ट मिलते है भ्रंशं-क्लेशं च शत्रु प्रवृद्धिं पुत्रसौख्यं सौख्यवृद्धिं च दोषम् । पीडासौख्यं – निर्धनत्वं धनाप्तिं नानानर्थं भानुसूनुस्तनोति ।।
शनि के दुष्प्रभाव से बचने के उपाय :- शनिवार को लोवान युक्त बर्तिका (बत्ती) कड़वे तेल के दीपक में डालकर सन्ध्याकाल में पीपलवृक्ष के नीचे दीपक जलाएं। जलयान के तल की कील या काले घोड़े की नाल की (जो कि घोड़े के पैर से स्वयं ढ़ीली होकर गिर गयी हो) या लोहे की अभिमन्त्रित अंगूठी पहने। बन्दरों को प्रत्येक शनि तथा मङ्गलवार को चना, गुड़ खिलायें। भीगे हुए उड़द (काले मूंग) पक्षियों को डालें। काले तिल मिश्रित कड़वे तेल की मालिश करें। असहायों को भोजन करवाये। यथाशक्ति द्रव्य, वस्त्र (विशेषतया काले वस्त्र) का दान दें। 11 अथवा 21 कच्चे नारियल संख्यानुसार सिरसे घुमाकर बहते जल में छोड़ दें, शनिमन्त्र का जाप, दशांश हवन, शनिवार का व्रत, सप्तधान्य का दान करने से ग्रहदोष शान्त होकर अशुभ फलों की निवृत्ति एवं शुभ फलों की वृद्धि होती है। धनायु कारोबार की वृद्धि होकर सौख्यसमृद्धि बढ़े, मंगलोत्सवकी खुशी हो।