श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 31 मई 2021। बालासन संस्कृत से लिया गया शब्द है जिसका अर्थ है-बाल यानि बच्चा और आसन यानि योगासन। बालासन गर्भस्थ शिशु की तरह का आसन है और शिशु सबसे ज्यादा सुकून से उसी में रहता है। इस आसन को इसलिए ही गर्भासन भी कहा जाता है।
तो आइए जानते है इसे करने की सही विधि के बारे में-
1. वज्रासन की मुद्रा में आराम से बैठें।
2. श्वास भरते हुए दोनों हाथों को ऊपर की ओर उठाएं।
3. श्वास छोड़ते हुए शरीर को कूल्हे की तरफ से नीचे झुकाएं।
4.हथेलियां जमीन पर टिके।
और ललाट भी जमीन का स्पर्श करें।
5. कुछ देर (2 से 5 मिनट) इसी मुद्रा में रहें और सामान्य श्वास-प्रश्वास करते रहें।
6. फिर श्वास भरते हुए हथेलियों को कंधों के नीचे लाएं और पुनः उसी स्थिति में आएं।
बालासन के लाभ
1. कंधे, कूल्हे, कमर में मजबूती आती है।
2. गैस और कब्ज में राहत मिलती है।
3. पीठ दर्द में आराम मिलता है।
4. थकान, चिंता और तनाव में कमी आती है।
5.स्त्रियों के मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द को कम करता है।
6. ऊर्जा का शरीर में संचार होता है।
बालासन का वैज्ञानिक आधार
बालासन भ्रूण मुद्रा है जिसके कारण व्यक्ति सबसे अधिक सुकून इसी मुद्रा में स्वयं को पाता है। बालासन में पीठ, कूल्हे, जांघ, हाथ और कमर की मसल्स में हल्का सा तनाव दिया जाता है जिससे उनकी स्ट्रेंथ बढ़ती है और लचीलापन भी। पेट और आंतों पर दबाव बनता है जिसके गैस और अपच जैसी समस्या समाप्त होती है। महिलाओं के गर्भाशय और ओवरी पर संतुलित मालिश होती है जिसके कारण विशेष दिनों में होने वाली तकलीफ से छुटकारा मिलता है।
सावधानी
1.हाई बीपी वाले बिना प्रशिक्षक के यह अभ्यास करने से बचें।
2. बालासन में आपको झुकने में मुश्किल होती है तो फर्श पर तकिया रख सकते हैं।
3.डायरिया या घुटनों में चोट से पीड़ित हैं तो बालासन का अभ्यास बिल्कुल न करें।
विशेष- यह अभ्यास वर्कआउट के बीच में भी किया जा सकता है।



