मंगलवार का दिन भगत सिंह जयंती के कारण तो वर्षों से देश के लिए खास बना हुआ ही था, मगर इस दिन को देश के दो युवा राजनीतिक चेहरों कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी ने भी खास बना दिया। इन युवाओं की देखा देखी क्रिकेट से राजनीति में भाजपा से सफर कर कांग्रेस तक आये नवजोत सिंह सिद्धू ने अजूबा राजनीतिक निर्णय लेकर सब को अचंभे में डाल दिया।
लोकतंत्र के बारे में ये सार्वभौमिक सत्य है कि जब जब किसी देश में विपक्ष कमजोर होता है तो वहां की सत्ता निरंकुश होती है और परिणाम जनता को भुगतने पड़ते है। भारत में भी गत 7 सालों से विपक्ष बिखरा है और उसी से कई परेशानियां यहां की जनता को भुगतनी पड़ रही है।
एक साल हो गया, किसान आंदोलन कर रहे हैं। बेरोजगारी सरकारी और निजी क्षेत्र में बढ़ी है। आम जरूरत की चीजें पेट्रोल और डीजल के दाम बेतहाशा बढ़े हैं। रसोई गैस भी आसमान की तरफ कदम बढ़ा रही है। खाद्य पदार्थो की महंगाई ने तो विकट समस्या खड़ी कर दी। इनके पीछे जहां सरकारी नीतियों को जिम्मेवार कहा जा सकता है तो कमजोर विपक्ष भी कम जिम्मेवार नहीं है। विपक्ष के कमजोर होने के कारण अलग अलग हैं, ये भी सत्य है। मगर क्षेत्रीय दलों की आपसी खींचतान, मुख्य विपक्षी कांग्रेस की बिगड़ी हालत भी इसका बड़ा कारण है।
भारत मे दो दशक से संयुक्त मोर्चो की सरकारें बन रही है, इसी ने क्षेत्रीय दलों को एक होने से रोक रखा है। समान मुद्दो पर इसी वजह से विपक्षी दल एक नहीं हो पा रहे और उनकी आवाज असरदार नहीं हो रही। जब भी विपक्ष एक होने की कोशिश करता है, उसमें कोई न कोई दरार आ जाती है। लोकतंत्र है, जाहिर है सत्ता विपक्ष को एक क्यों होने देगी।
बात मंगलवार की। इस दिन दो बड़ी घटनाएं हुई। छात्र राजनीति से वाम राजनीति में सक्रिय हुए कन्हैया कुमार ने अपना रास्ता बदला है और सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का हाथ पकड़ा है। अपनी वजह बताते हुए उन्होंने कहा कि लोक सभा की 244 सीट पर कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला होता है, विपक्ष का आधार यही पार्टी है। लोकतंत्र, संविधान की रक्षा के साथ सत्ता के विरोध के लिए उन्होंने कांग्रेस में आना उचित बताया। देश में कन्हैया की अलग पहचान है और वे प्रभावी वक्ता है। बिहार में उनके आने से कांग्रेस मजबूत होगी। बिहार की राजनीति में दो युवा तेजस्वी और चिराग पासवान पहले से ही सक्रिय हैं, अब कन्हैया वहां विपक्ष की राजनीति को मजबूत करेंगे।
जिग्नेश मेवानी गुजरात की राजनीति में जाना पहचाना चेहरा है और युवा नेता के रूप में उनकी खास पहचान है। दलित राजनीति के केंद्र में वो एक दशक से हैं। पिछले विधान सभा चुनाव में निर्दलीय जीत दर्ज की थी। हार्दिक पटेल को उनका साथ मिलेगा, कांग्रेस अब गुजरात में ज्यादा आक्रामक होगी, ये तय है। वहां भाजपा को तगड़ी टक्कर देगी इस बार कांग्रेस।
इन दोनों युवाओं के आने से देश की राजनीति में व्यापक असर होगा। क्योंकि दोनों ही भाजपा के कट्टर विरोधी के रूप में पहले से पहचान पाये हुए हैं। कांग्रेस में अब तक अकेले राहुल गांधी ही खुलकर केंद्र सरकार पर हमला कर रहे थे, अब उनको कन्हैया और जिग्नेश का भी मजबूत साथ मिलेगा। भाजपा खेमे में इस बात से चिंता तो बढ़ी है।
मगर कांग्रेस में इनके आने से सब कुछ ठीक नहीं है। कांग्रेस सांसद और मुखर वक्ता मनीष तिवारी के ट्वीट ने पार्टी नेतृत्त्व को सकते में डाला है।
मंगलवार को जहां कन्हैया और जिग्नेश ने कांग्रेस को सुकून दिया वहीं हाल ही में पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष बनाये नवजोत सिद्धू ने पद त्याग के परेशानी पैदा कर दी। पार्टी आलाकमान ने सिद्धू की जिद पर अमरिंदर को सीएम पद से हटाया और दलित वर्ग के चन्नी को सीएम बना आने वाले चुनाव की बिसात बिछाई थी। मगर सिद्धू के इस्तीफे ने कांग्रेस के सारे गणित को बिगाड़ दिया। अब सिद्धू को मनाने की कोशिश हो रही है।
राजस्थान में भी कांग्रेस की अशोक गहलोत के नेतृत्त्व वाली सरकार आराम में नहीं है। एक साल से गहलोत और सचिन पायलट के बीच सार्वजनिक खींचतान चल रही है। उसे भी मंगलवार को हवा मिली। सभी मंत्रियों से इस्तीफे लेकर मंत्री मंडल को फिर से बनाने की खबरों के मध्य पायलट खेमे के राजेन्द्र चौधरी और वेद प्रकाश के बयानों ने आलाकमान को चिंता में डाल दिया है। उसे अहसास हो गया है कि राजस्थान के मामले को अब ज्यादा दिन नहीं टाला जा सकता। टला तो समस्या कम होने के बजाय बढ़ेगी। मंगलवार इसी कारण देश की राजनीति के लिए खासा हलचल भरा रहा। आने वाले पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के कारण एक बार फिर राजनीति चरम पर है। भाजपा और कांग्रेस, दोनों के लिए कड़ी चुनोतियां खड़ी हुई है। जिनके निर्णय आने वाले समय में राजनीति के बड़े उलटफेर करेंगे, ये तो तय है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार