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श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स 1 जुलाई 2024। देश में कानून गए है और इस संबंध में नए कानूनों को आमजन तक पहुंचाने, कानूनों की जागरूकता व समझ का विकास करने के लिए श्रीडूंगरगढ़ टाइम्स द्वारा अपने पाठकों के लिए विस्तार से खबरों का प्रकाशन किया जाएगा। जिसमें युवा वकील अनिल धायल नए कानूनों के बारे में पूरी जानकारी आप तक पहुंचाने में सहयोगी बनेंगे।
भारत की न्यायिक व्यवस्था में आज से व्यापक क्रन्तिकारी बदलाव होने जा रहें है। 1 जुलाई 2024 से देश में नये क़ानून लागू होने जा रहें है जिसके बाद देश की न्यायिक व्यवस्था के काम करने के तरीके व कार्य प्रणाली पूरी तरह बदल जाएगी। ब्रिटिश काल से चले आ रहे प्राचीन क़ानून जहां मुख्यत दंड पर आधारित थे वहीं आज से लागू हो रहें नये क़ानून न्याय प्रदान करने के विचार से लागू किये जा रहें है। सरकार द्वारा नये क़ानून लागू करते समय यह प्रयास किया गया है कि देश की जनता को न्याय शीघ्र व सुलभ प्राप्त हो और पुराने समय से चले आ रहें लेटलतिफी वाले न्यायिक ढर्रे को बदल कर त्वरित न्याय उपलब्ध करवाया जा सके।
आइये जानते है नये व पुराने कानूनों की कुछ सामान्य जानकारी…
तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनयम हैं। ये कानून क्रमशः भारतीय दंड संहिता (IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) और पुराने भारतीय साक्ष्य अधिनयम की जगह लेंगे। प्राचीन क़ानून भारतीय दंड सहिंता (आईपीसी) में 511 धाराएं थीं, जबकि भारतीय न्याय संहिता (BNS) में 356 धाराएं होंगी। कई सारी धाराओं को हटाया गया है, कइयों में बदलाव किया गया है और कई धाराएं नई जोड़ी गई हैं।
बीएनएस में 20 नए अपराध जोड़े गए हैं और निरस्त आईपीसी के 19 प्रावधानों को हटा दिया गया है। 33 अपराधों के लिए कारावास की सज़ा बढ़ा दी गई है और 83 अपराधों के लिए जुर्माना बढ़ा दिया गया है। 23 अपराधों के लिए अनिवार्य न्यूनतम सज़ा पेश की गई है। छह अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा की सज़ा की पेशकश की गई है। ब्रिटिश काल से देश में लागू तीन आपराधिक कानून आज से इतिहास बन जाएंगे। लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है की नये क़ानून लागू होने के बावजूद इतिहास बन चुके कानून कुछ हफ्तों या महीनों तक उन लोगों का पीछा नहीं छोड़ेंगे जो किसी ऐसे अपराध से संबंध रखते हो जो एक जुलाई से पहले यानी 30 जून की रात 12 बजे से कुछ पल पहले हुआ होगा। ऐसे में मुकदमा और प्रक्रिया पुराने क़ानून भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (आईईए) के तहत ही लागू किए जाएंगे। नए आपराधिक कानून लागू होने के बावजूद पुराने में मामला दर्ज होने के पीछे की वजह यह है कि आपराधिक कानून पूर्वव्यापी (रेट्रोस्पेक्टिव) लागू नहीं होते।
जांच एजेंसियो के सामने चुनौती….
नये क़ानून लागू होने के बाद पुलिस, प्रशासन, जांच एजेंसियों व न्यायालय के समक्ष भी चुनौतियां बढ़ गयी है। क्योंकि पुराने व नये क़ानून दोनों का पूर्ण ध्यान रखते हुए न्यायिक प्रक्रिया का पालन करना आसान नहीं होने वाला है। जब देशभर में तीन नए आपराधिक कानून लागू हो गए हों।
अगर निर्धारित एक जुलाई की तिथि से पहले कोई भी अपराध हुआ है तो कानून लागू करने वाली सभी एजेंसियों को यह ख्याल रखना होगा कि मामला और प्रक्रिया पुराने कानूनों के तहत चले। ऐसा नहीं होने की स्थिति में पीड़ित को अदालती प्रक्रिया में नुकसान होगा और जांच एजेंसी की गलती का खामियाजा उसे भुगतना पड़ेगा। अगर घटना कानून लागू होने की तिथि से पहले की होगी और अगर गलती से भी नए कानून के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया तो अदालत उसे रद्द कर देगी और पूरी प्रक्रिया फिर से निभानी होगी और पीड़ित को न्याय मिलने में बेवजह की देरी का सामना करना पड़ेगा। इसलिए तमाम लोगों को भ्रम में रहने की बजाय यह समझ लेना चाहिए की 30 जून तक की घटना पर पुराने क़ानून की प्रक्रिया रहेगी। वहीं 1 जुलाई से होने वाली घटना पर नये क़ानून के अनुसार न्यायिक प्रक्रिया लागू होंगी। पुरानी घटना पर या तो पुलिस मुकदमा पुराने कानून में ही दर्ज करेगी और गलती से नए कानून में दर्ज कर लिया तो अदालत से लेकर सर्वोच्च अदालत तक में सुनवाई के दौरान जिसने भी गौर कर लिया कि घटना पुरानी है तो एफआईआर रद्द कर दी जाएगी। नए सिरे से एफआईआर पुराने कानून में दर्ज होगी। इसलिये इस सामान्य बात को भी सही तरीके से समझने की जरूरत है ताकि आमजन को न्याय मिलने मे आसानी हो।
नए क़ानून से बदलाव क्या होगा ?
आईपीसी की जिस धारा को लेकर सबसे ज़्यादा चर्चा हो रही है वो है राजद्रोह। हाल के दिनों में सरकार और विपक्ष के बीच ये बहस का मुद्दा भी रहा। नए कानून में धारा 124B को पूरी तरह खत्म किया जा रहा है। आमतौर पर लोग इसे देश द्रोह कहते हैं लेकिन अंग्रेजों के समय में ये राजद्रोह था। ये धारा राजद्रोह की है देश द्रोह की नहीं है। देश के खिलाफ लड़ाई छेड़ने के मामले की एक अलग धारा आईपीसी की सेक्शन 121 में है। अगर आपको मुंबई के ताज होटल में 26 नवम्बर 2008 में हुआ हमला याद हो तो उसे अंजाम देने वाले पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब के खिलाफ यही धारा लगाई गई थी। देश द्रोह के नाम पर जो नया कानून बन रहा है उसमें कई बातें नयी हैं। सशस्त्र विद्रोह, देश को तोड़ना, अलगाववादी गतिविधयों में शामिल होना, देश की एकता अखंडता को ख़तरा पहुंचाने जैसे अपराध को नए कानून में जोड़ा गया है। ये नया कानून अब सेक्शन 150 होगा।
नए कानूनों में महिलाओं और बच्चों के ख़िलाफ़ अपराधों में सज़ा को प्राथमिकता दी गई है।
छोटे अपराधों के लिए सामुदायिक सेवा के दंड को नए क़ानून में शामिल किया गया है। यानी कोई छोटी मोटी चोरी जैसे मामलों में पकड़ा जाता है तो उसे बड़ी सजा देने की जगह कहा जायेगा कि जाओ समाज के लिए कुछ अच्छा काम करों। उसे काम बता दिया जायेगा। ये पहली बार शामिल किया जा रहा है। नए कानून में गैंगरेप के दोषियों को 20 साल से लेकर उम्र कैद तक की सज़ा का प्रावधान है। नाबालिग से बलात्कार पर इसे सख़्त करते हुए मौत तक की सज़ा कर दिया गया है। शादी या नौकरी का झांसा देकर रेप करने पर अलग से सज़ा का प्रावधान है। मॉब लिंचिंग केस में 7 साल से उम्र कैद तक की सज़ा है। यानी अगर भीड़ में कोई किसी को पकड़कर मारता है तो उसे अलग कानून में अब रखा गया है। अभी तक धारा 302 में ही ऐसे केस को शामिल किया जाता था। किसी भी मामले में जल्द कार्रवाई के लिए जो ज़ीरो एफआईआर की सुविधा है उसमें अब कुछ बदलाव किया गया है। केस पर जल्द कार्रवाई के लिए अब जिस थाने का केस होगा वहाँ ज़ीरो एफआईआर 15 दिन के अंदर भेजनी होगी। ज़ीरो एफआईआर का मतलब है आप राज्य के किसी भी शहर या थाने में जाकर अपना एफआईआर दर्ज़ करा सकते हैं। इससे फर्क नहीं पड़ता है कि केस किस थाने या शहर का है। साल 2012 में निर्भया गैंग रेप मामले के बाद केंद्र सरकार ने देश में बढ़ते गंभीर मामलों को रोकने के लिए ज़ीरो एफआईआर की व्यवस्था लागू करने का फैसला किया था।