चलिए कुछ अच्छा करते है—एक से अनेक ले प्ररेणा, पहल की स्वर्णकार समाज ने।





श्रीडूंगरगढ टाइम्स 10 सितंबर 2019। बढते हुए भारत ही नहीं हमारे शहर की भी विकराल समस्या है। पूरी पृथ्वी इससे त्रस्त है और थोड़े से सुख के लिए हम इसे अपने जीवन में ना नहीं कह रहे है। थोड़े से स्वार्थ के लिए हम प्रकृति को ऐसी पीड़ा दे रहे है कि पूरी मानवतर आज कराह रही है। जाने अनजाने हम धरती माँ को बंजर बनाने का काम कर रहे है। आइये आज एक नयी शुरूआत करते है और अपने शहर के लिए कुछ अच्छा करते है और प्रेरणा लें स्वर्णकार संघ से।

आज कस्बे के स्वर्णकार माताजी भवन से एक सर्कूलर जारी कर कहा है कि उनके भवन में शादी या अन्य कार्यक्रम के आयोजन पर थर्माकोल, डिस्पोजल, पॉलिथीन का प्रयोग पूर्णत: प्रतिबंधित रहेगा। पर्यावरण सुरक्षा ओर स्वच्छ गांव के लिए क्षेत्र में प्रथम पहल करते हुए श्रीमैढ़ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज आगे आया है। समाज के संघ ने फैसला किया है कि हाई स्कूल रोड स्थित स्वर्णकार माताजी भवन में शादी या अन्य आयोजनों में इस्तेमाल होने वाले थर्माकोल, प्लास्टिक के बर्तनों (डिस्पोजल) और पॉलिथीन का उपयोग पूरी तरह प्रतिबंधित रहेंगे। भवनमंत्री श्रवण कुमार सोनी ने कहा कि भवन में  विवाह आदि आयोजनों में अब तक लोग यूज एंड थ्रो पेटर्न को अपनाते हुए प्लास्टिक,  डिस्पोजल व थर्माकोल के बर्तनों का उपयोग करते थे। कई बार लोग ठीक से सफाई न कराकर इन बर्तनों को भवन परिसर में और आसपास की नालियों में फैंक कर चले जाते हैं। इससे नालियां भी चोक हो जाती है, वहीं पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है साथ मे जाने-अनजाने में गोवंश खा लेते हैं जिससे गोवंश की मौत हो जाती है। और अब सख्ती से हम ये लागु करेगें कि कोई संस्था या व्यक्ति भवन परिसर में पलास्टिक का प्रयोग नहीं करें। टाइम्स को ये मात्र एक संदेश नहीं बल्कि शहर की सार्वजनिक आत्मा के लिए आवाह्न लगता है। ऐसा सभी संस्थाऐं या समाज कर सकते है जो स्वच्छ भारत निर्माण में उनका सक्रिय योगदान हो सकता है।

जानें प्लास्टिक कचरें से होने वाले नुकसान– प्लास्टिक कचरे से पर्यावरण को पहुंचने वाले खतरों का अध्ययन अनेक समितियों ने किया है। प्लास्टिक थैलों के इस्तेमाल से होने वाली समस्यायें मुख्य रूप से कचरा प्रबंधन प्रणालियों की खामियों के कारण पैदा हुई हैं। अंधाधुंध रसायनों के इस्तेमाल के कारण खुली नालियों का प्रवाह रूकने, भूजल संदूषण आदि पर्यावरण को विषाक्त बना देते है। प्लास्टिक की थैलियों, पानी की बोतलों और पाउचों को कचरे के तौर पर फैलाना नगरपालिकाओं की कचरा प्रबंधन प्रणाली के लिये एक चुनौती बनी हुई है। अनेक पर्वतीय राज्यों (जम्मू एवं कश्मीर, सिक्किम, पश्चिम बंगाल) ने पर्यटन केन्द्रों पर प्लास्टिक थैलियोंबोतलों के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने एक कानून के तहत समूचे राज्य में 15.08.2009 से प्लास्टिक के उपयोग पर पाबंदी लगा दी है। केन्द्र सरकार ने भी प्लास्टिक कचरे से पर्यावरण को होने वाली हानि का आकलन कराया है। इसके लिये कई समितियां और कार्यबल गठित किये गए, जिनकी रिपोर्ट सरकार के पास है। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने धरती में घुलनशील प्लास्टिक के 10 मानकों के बारे में अधिसूचना जारी की है।

श्रीडूंगरगढ टाइम्स। स्वर्णकार माताजी भवन से एक सर्कूलर जारी

प्लास्टिक के विकल्प

प्लास्टिक थैलियों के विकल्प के रूप में जूट और कपड़े से बनी थैलियों और कागज की थैलियों को लोकप्रिय बनाया जाना चाहिए और इसके लिए कुछ वित्तीय प्रोत्साहन भी दिया जाना चाहिए। यहां, ध्यान देने की बात है कि कागज की थैलियों के निर्माण में पेड़ों की कटाई निहित होती है और उनका उपयोग भी सीमित है। आदर्श रूप से, केवल धरती में घुलनशील प्लास्टिक थैलियों का उपयोग ही किया जाना चाहिये। जैविक दृष्टि से घुलनशील प्लास्टिक के विकास के लिये अनुसंधान कार्य जारी है। समस्यायें जन्म लेती हैं। प्लास्टिक रसायनों से निर्मित पदार्थ है जिसका इस्तेमाल विश्वभर में पैकेजिंग के लिये होता है, और इसी कारण स्वास्थ्य तथा पर्यावरण के लिये खतरा बना हुआ है।